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________________ उ.भाषा अ०१ तिम चाले जिम जातवंत घोडो असवारने भाव चाले तिम विनित शौश्च गुरुनौ अंगचेष्टा जाणिने गुरुने भावे विचरे प० अनुष्ठानप० सर्वधा वर्जे के १० गुरुना वचन अपकरणहार थू. अनिपुण भाषि भूडा आचारनो धणौ मि. क्रोध रहित जे गुरु होइ तेहने पिण च० क्रोधी प० करसौ. कूशिश्च चि. गुरुने चित्त वर्ते ल• भौघ्र द. बिलम्ब रहित कार्यनो कर्णहार एवं गुणे करि सहित प. प्रशांत कर ते विनौत शिष्य हु• वलौदु. अतौ क्रोधी गुरुने पिण१३ अथ चन्द्ररूद्राचार्यनौ कथा कहीये के उजणी नगरौये चण्डरुद्राचार्य चोमासे रह्या अतिहौरीसालु थोडे बोल्यो घणो रौस चढावे बड़े महामाने उपाययटुकड़े राख्या जेसह इम भेला रही तोरखे गुरुने रौसचढ़े रौसे जौवनाकारज विणसे जे भणौ सिद्धांत माहिं कहूं के यत: कोविसंकि अमयं अहिंसा माणो अरिकिहियमप्यमानी मायाभयं सरणं तुसच लोही दुहं किंहियमाहुतुट्ठौ १ तेहवे अवसर ते नगरमांहि किणहीक व्यवहारीयानी पुत्र नवपरणोतसाला सहितके वौजाई मित्र सहित नगरमध्ये क्रीडा करता आया एहवे अवसर जे वनमाहि जती रह्याछे तिहां कुमार क्रौड़ा करता आव्या तिहां जति घणा वैठादोठा तिहां ते आवो वैठा तेहवे मित्रसाले सगले ही हसौ कह्यो ए तुम पासे दीक्षा ल्ये छ एहने दिक्षा द्यो तेहवे तेणे साधे कह्यो अम्हे न जाणा गुरु जाणे तो तुमे अमने गुरु दिखाडो तिवारी शिष गुरु देख्याद्या तिहां कला गुरू वैठाछे तिहां आव्या हासो माही माहि करतां गुरुवांद्यातिहांसालोहस्थो भगवान दीक्षा लेके हासामिसवार एतले गुरुने रोस उपनो ततकाल पकडी पग विचे माथो चांपी श्लेभानौ रोषे लोच कौधो अने जाण्या रखे एहवे सालो मित्र प्रमुख हुता ते विषाद पाम्या जाण्या हसता अमे कच्चा अने गुरे रौस वसे साचो कौधा प्रने जाडो रखे अमने पिणमूंडौनाखे भयभीत थईने नाठा तेहने नव दीक्षत सुशिये कह्या भगवंत तुमने दहा रहिवानो लाभ नही माहरासगा तुमने दुहवणा अवहोलणा करसो ते भणो आपणो अमेथिजर तेहवेगुर रौसनावस थको कर्कश वचन कच्यो रे पापिष्ट रे दुरात्मा किये कयो त दीक्षा लौजे एहवे राय धमपतसिंघ बाहादुर का प्रा० सं० २०४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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