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उ० भाषा अ०३
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जौती राज्य ले परं राज्य सरोखो मनुष्य जन्म हाराव्यो प्रमादवसते वलतो लहतो दुर्लभ जाणिवो इति चौथो दृष्टांत |8| हिवे पांचमो रत्ननो दृष्टांत कहे के जिम किणहोक नगरि को एक व्यवहारियो धनवान वसतो तेहने एक रतन टालि बोजा कोणहो कि राणा नो व्यापार नथी हम करते घणा रत्न एकठा करो एकडाबडी भरो जीहां आपसे पैठौ सुवे के तिहां पलंकना पाया नौचलो भूमि गत विधान करो मूकी के तिवारी रत्न स लाई बहु मुला के पिण कोणहोक पुत्र कलत्र आगलि कहे नहीं जे कोई तेहने जोइये ते सह वस्त्र आभरण गंधमालादिक आपे पिण विश्वास किण्ही नो न करे इम जाये हु मननोभेद कहिस्यं तो ए डिकरा सर्व रत्न श्रधा पाछा करो खरच स्ये नगर मांहि चोहटे सभाइ जिहार लोक मि तिहार श्रष्ठने तथा पुत्रने कहे अहो तुम्हारा धननो स्यो फल कांई व्यापार न करे कोई जाये नहीं सर्पनो मणि सरीखी तुम्हारी सम्पदा के कोई वाणी उतर नहीं कोद्र साथ चलावी नहीं किया व्यवहारो नही तो तुम स्याव्यवहारोयाजि म२ लोक कहे तिम२ तेहना पुत्र चारि के ते मन मांहि खोजे अम्हे किस' करु' अम्हने पिता धन देखाडे नहीं जे देखाडे तो म्हे पिण व्यापार करु देशांतरजाउ' वाणिज चलाबु' अम्ह ने सहको जाणे मांडवोया जाणे राजा लगि प्रसिद्ध थाऊ' परं किम करु अम्हने धन न देखाड़े इम चिंतवतां केतली एक काल वडलो तेतले किणहोक नगर थी सगानोकागल आव्योतिष मांहि एहवो लिख्यो अम्हार उच्छव के जे तुम्हे आपण डौले नाव्यातो म्हे तुम्हारे सगा नहीं तुम्हे अम्हारे सगा नथौ एहवो आकरोवचन प्रमाण जाणि सेठ विमासोवा लागोहिवे किम कौजे एक दिसवात्र एक दिशि नदी किहां जाये ते सगानी नगरवेग लोजी जईये तोषणा दिवसलागे जेन जाइयेतो सगानो सेह तुटे सगपिण कि मतो डिये यतः नागडानव खंडेह सगपणस धिनतोडिये भु' उपर भमते हि मिलिये जइ मरोये नही १ इसी जालो ते दिमजावानो एकांत निषय कीधो तिहां चालिवा भणो सामग्री करोबा लागी तिवारी पुत्र चिंतव्यो
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राय धनपतसिंह बाहादुर का श्र०सं० उ०४१ मा भाग