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उ भाषा ४ चूलणौवे विषय विकार करौने परवस छतौ राजा दिर्घ स्थो आसक्तथइ ते ब्रह्मदत्त जाणौ ते दीर्घ रायने प्रतिबोधिवा भणी दृष्टांत देखाद्या एकदा पन्न अ०३ नागणीने गोणससर्प एकठा करौ गोणसने प्रहार मूकी कछु' पर पापिणी गोणस तुम्हने पद्म नागणी केही संग वली अनेरे प्रस्ताव राजहंसौ अने
४ काग लोएकठा करौ काग प्रते का रे पापीकागतीने राजहंसौ नो केही संग इम कहो ता जाणे पाहणी इम दीर्घ राय देखी भयभात घई
चूलणौने कह्यो ई ताहरा पुत्र थी विडु तिण कारण जाइस्य एहवो सांभलौ चूलणी राग करौ कयो हुँविणास स्यूं तु निश्चंत रहे इम कही पुत्र विशासवा भणी ला खनो घर कराव्यो ते कूड मन्त्री खर जाणो कापिल पुरनगरने परसर गंगानदीने उपकण्ठे उडज करी रह्यो तिहां हते सुरङ्गखणावी लाखाहरने प्रांगण प्रांण मूकी पापणी पुत्र ब्रह्मदत्तने पासि मुक्यों एक क्षिणमात्र एह थकी वेगलीम श्राइसि ए पुरुष रतन के 8 एहने जो खम घणो तेणे कारण यतन स्यू' राख्यो जोइये यतः यस्मिन् कुले यः पुरुषप्रधानं स एव यत्नेन हि रक्षणीय तस्मिन् विनष्टे सकलं विनष्ट इति वचनात् एहवा सौखामणतात नौ अंगीकार करी मंत्रीखरनो वेटो रात दिन कुमरनी सेवा कर एक क्षणवेगली न थावे इम करतां कुमर परणावो तेणे घर आयो अरात्रि प्रावि तुलशीइ तिहां अग्नि लगाडी लाक्षाघर गलोर पडीवा लागी तिवारी मंत्रीश्वरने पुढे उठी
का कुमरजी जागो तिवार ब्रह्मदत्त बैठी थयु' विंदु पासे घर प्रज्वलती दौठो परं उत्तम पणा थी तिगार कमन मांहि भयनायो एहवो ४ साहस जाणो परौख्या निमित्त मंत्रीने वैटे कुमर वोलाव्यो कहो जौ हिवे स्यु थास्य तिवारे कुमर कहे जेहवो भवितव्य के तहनी समवाय मिलस्ये
इसी कुमरनो वचन सांभलो मन्त्रोखरने चिंतव्यो ए कुमर साहसनो निधान पुरुषमहाप्रधान के एहने कार्यसिद्धि स्वाधीन हुस्ये यतः उद्यमं साहस धैर्य वलं बुद्धिपराक्रमे पड़ेते यस्य विद्यन्ते तस्य देवोपि शकते ॥१॥ इसी जाणौ बुदिनौ परीक्षा भणी कुमर पूछ कुमर जी जिवार वन माहि दावा
राय धनपतसिंह बाहादुर का पा०सं० उ. ४१ मा भाग