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उन्टीका
अ०३६ १०७०
स्व
भाषा
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कथिता १६६ [सत्तरस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया पञ्चमाए जहत्र णं दसचैव सागरोवमा १६७] पञ्चमायां नरक पृथव्यां धूम प्रभायां अन्य प्रस्त सप्तदशसागरोपमानप्रायुः स्थितिर्व्याख्याताः जघनेान तु दशसागरोपमानायुः स्थितिर्व्याख्याता १६७ (वावीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया छट्ठौए जहन्र णं सत्तरससागरोवमा १६८ ) षट्यां नरकपृथिव्यां तमः प्रभायां अन्त्येप्रस्तटे उत्कृष्ट न हाविंशति सागरोपमानि आयुः स्थितिर्व्याख्याता जघनेन सप्तदशसागरोपमानि आयुः स्थितिर्व्याख्याताः १६८ (तित्तीत सागराज उकासेण वियाहिया सत्तमाए जहने व बावीसं साग रोबमा १६८ ) समायां नरक पृथिव्यां तमस्तमः प्रभायां अन्त्य प्रस्तटे उत्कृष्टेन चयस्त्रिंशत् सागरोपमानप्रायुः स्थिति र्व्याख्याता जघनेन हाविंशति सागरोपमा नप्रायुः स्थितिर्व्याख्याता १६८ [जाचेवड आउठिई नेरईयाण वियाहिया सातेसिंकायठिई जहन कोसियाभवे १६८] नारकाणां याजघनप्रोत्कृष्टतः श्रायुः जहन्न णं दसचे वउ सागरोबमा १६५ ॥ बावीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीए जहन गं सत्तरस सागरो वमा १६६ ॥ तित्तीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन गं बावीसं सागरोवमा १६७ ॥ जाचे वड पांचमौ पृथवी नारकौनो छेहलो प्रतरे जघन्य दस सागरोपमनो पेहला प्रतरनी अपेक्षाई १६३ जे वली आऊखानी स्थौति उत्कृष्टो को तीर्थ करे नारकौने विखे छट्ठौद्र प्रथिवोद्र नारकोनो छेहले प्रतरे जघन्ये साहे तेहने तेहन्ये जकाय स्थितो जे भणी नारको मरो नारकौमे नथाई जघन्य पणे उत्कृष्ट पणे हुई १६४ बावीस सागरोप ममो आऊखो उत्कृष्टो को तीर्थ करे छोइ पृथिवोद्र नारकोनो छेहले प्रतरे जघन्य सतर साग रोप मनो पेहली प्रतरनो अपेचा १६५ तेत्तीस सागरोप मनो आखो उत्कृष्टो को तीर्थ करे सातमो पृथिवोद् नारकोनो जघन्य बावीस साम
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रायूधनपतसिंह वाहादुर का आ० सं०ड० ४१मा भाग