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________________ bFr १०६० टिया मध्ये केचित प्रसिहाः केचित् अप्रसिद्धाः सन्ति १३० [इइबेन्दिवाएएणेगहाएवमाइग्री लोएगदेसे ते सव्वे न सम्बत्ववियाहिया १३१] इति मनाप्रकारेण एतेहीन्द्रिया एव मादयोऽनकधाः अनेकनामानीवर्तन्ते ते सर्वेहीन्द्रियाजीवालोकैकदेशे चतुर्दशरन्चामलोकस्य एकदेशे जला वयादौ तिष्टन्ति सर्वत्र न व्याख्याताः सन्ति १३१ [सन्तर' पप्पणाईया अपज्जवसियाविय ठिई पडुचसाईया सपज्जवसियाविब १३२] ते हौन्द्रियास्मन्ततिं पवारमाथित्य पनादयः तथा अपर्यवसिता अपि सन्ति स्थितिं भव स्थितिं प्रतोत्यसादिकाः सपर्यवसिता पपि च सन्ति १२२ पूर्व' भवस्थिति बदति (वासार बारमेवउ उकोसेणं वियाहिया बेंन्दिय पाउठिई अन्तीमुहुत्त जहबिया १३३) हौन्द्रियाणां हादशवर्षाणि आयु:स्थि तिरुत्तष्टाव्याख्या तास्ति जघन्यतोन्तम हत्त न वसमयादारभ्य किञ्चिदूनं घटिकाइयं आयुषेस्थिति ाख्याता १३३ अथ कायस्थिति माह (संखिज्जकालमकोस अन्ती ओ। लाएग देसे ते सब्बे न सब्बत्य वियाहिया १३१ ॥ संत पप्प णाईया अपज्जव सियाविय ठिडू पडुच्च साईया सपज्जव सियाविय १३२॥ वासाई वारसेवउ उक्कासण वियाहिया। बेदिय आउ ठिई अतीमुहुत्तं जहन्निया १३३ संखेज्जकाल मुक्कोसा अतोमुहुत्त जहनिया। बेदिय काय ठिई तं कायंतु अमुचओं १३४ ॥ अणं तकाल मुक्कासं * संतति प्रवाहे धादि रहित अपर्वबसित अनंतपोण थिति आयी आदि सहित अने अनंत अंतवीण १३१ वरस बारे १२ उतनष्ठी की वेंटिय जीवने उखानी स्थिति अंतर्मुहुर्त जघना आऊखी १३२ संख्याता कालनी उत्कृष्टी अंतर्मुहुर्त जघनापण १३२ वैद्री जीवनो कायस्थिति तेहनी माई रहित वेंट्रियकाय चमकताने १३३ अनंतकाल उत्तष्टी अंतर्मुहर्त जघना बेंद्री जीवनी आतरोए कधी खकायकांडी वनस्पती माहि राब धनपतसिंह बाहादुर का पा सं० उ. ४१ मा भाग
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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