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उ०भाषा
४ गया तेहवे बलदेवपाणी लेई तिहां आवे तठे भाइ सूताछई तेहवे बोलावे अही बंधव पाणी पौवो मुझने पाणी आणतावार लागी सही तुम्हेतिरस्या
थया इम विलापथ की मूपो नथी जाणतो नेह थको कृष्णने खंधे उपाडौ इम अनेक मनावणा करता छमास हुवा एहवे एक देवता ब्राह्मणने रूपे थई
मृतक गायनो रूप विकुर्यों तेहने वाछडो चूचें के एहवो स्वरूप बलदेव देखी कहिवा लगो अहो विप्र एहवो विप्रकाई मूई गायने घवरावे के बलतो * ब्राह्मण कहे तु मूर्ख जे मूवाने खंधे ऊपाडतां कुमास थया अनें मूत्री न थी जाणतो वलोवेलूरत नौघाणी करता बलदेव का परे मूर्ख वेलूमाहि
घृत किहां नौकले देवता कछु मूत्रा क दौजोवें इम देवताई बूझव्यो श्री कृष्णने संस्कार करीवे राग्य थको श्रौनेम कहें चारित्रलेई विहार करे अनें जिहां २ भिक्षाने जाइ तिहां २ तेहना रूपमोही स्त्रीसर्वघरना कामकाज मूको जीवे पाछे फिर सर्वकाम विसार एकदा श्रीबलेदेव मुनि भिख्याने
अर्थे ग्राम माहिपसतां कूवाकांठे एक स्त्री बलदेवनी रूपदेखी जीती २ घडाने भरोसें आपणा बेटाने गले रस्मी बांध्यो तेहवें बलदेवे छोडव्यो * तिवारे चिन्तव्यो माहरा रूपने धिक्कार हुओ जे रूप देखाए हबा अनर्थ ऊपजें एरूपपंचेंद्री बालकनी पाप मुझने लागतो ते श्रीबलदेव रूप अनर्थ
हेतु जानि नियम लोधी आज पाछे ग्राममाहिावी भिक्षा न लेवी जे वेड मांहि कोई खडवाही काष्ठबाही तथा सार्थवाही पाव्यातादौइतोल्य
इम चितवी वेडजई रधु तिहां शांतिप्रणाम देखौनें बैठना जाव हरणादिक आश्रये रहें एहवे मृगलो एकजातौ स्मरणथी ते वलभद्र मुनिनी सेवा * करे जिहां साथा तस्या जाणे फालदेतो ऋषिनें जणावें भातपाणी मेलवे एकदाते वनमाहि रथकारसार्थ वाहघणु हर्षपामी भिख्या देवा उठ्यो
भाव सहित मृगभावना भावेछे जेडु मानवौटु' ततो निस्तरत अने बलभद्र सूझती पाहार लेता अईकापौ वृक्ष नौडालिवायने जोगविहु ऊपर ॐ पडौत्रिणेई मरौ पांचमें ब्रह्म देवलोके देवता हा जिम बलदेव ऋषोखर याचना परोसह मह्यंतिम बौजें सहिवौइति श्रीयाचमा परौसह दृष्टांत १४
राय धनपतसिंह बाहादुर का प्रा० सं० उ. ४१.मा भाग