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उ० टोका
अ०२
१००
थया पाका द्वारिका प्रवता तप करो तो दोपायन ऋषि दौठो तिथे कुमरे होपा यनने लात प्रहार करो धणु विडंव्यो जे ए हारिकानी विणास करि स्ये तेहवे ऋषि चिन्तव्यो जे माहरा तपनो प्रभाव हुइ तो हुं मरौने सावाल वृद्ध युयांन हारिका नगरौ दाहने अर्थों होषं एहवो मियाणो बांध्यो तेणे कुमरे ऋषिवचन सांभलौ कृष्णकने आवो सर्ववात कहो पक्छे ऋषिवचन अन्यथा करिवा कृष्ण आवो ऋषौने पगे लागो स्वामी बालक अग्यानी चूका तुमे अपराधखमी बलतो ऋषि कहे लोकनो अपवाद ऋषिनो सराप अन्यथा न थावे पक्छे कृष्ण पाका श्रव्या ऋषि क्रोधे काल करो अग्नि कुमार देवता हुप्रो' ज्ञान करो पाइलो बेर जाग्यो आवो अग्नि पिण मगर मांहि घर दौठ प्रबल तप करे जे तपना प्रभाव थौ बारे वरस नगरमांहि जोर न चाल्यो हिवे बार वरसने छेहडे नगर लोकने सम काल सरौखोज बुद्दिजपनौ घणा हो वरस तप करतां हुवा आज आपणे घर न कौधो तो बोजा घणा हो नगर मांहि करे के तिथे सखो जिम एकने बुद्धि ऊपनौ तिम सहुने बुद्ध उपनी तिम सघले आंबिल तपन कराणो एहवे तिणेद्र लाग पाम्यो छे नगर सघलो दाह कोधो जे दौचा लोइ तो तेने मनाथ पासे मोकल्या बोजा ते नोकल्या ते वायुना आकाष्या हुतां अग्नि मांहिनांखे श्री कृष्ण अने बलदेवनो पराक्रमो मोटे जगया के आपण स्वजनपरिवारसह बलता देखि दुखो हुवा ते बिन बंधव वनवासी नोकल्या तिथे वन जराकुमार रहे तिहा पडता कृष्ण महारायने त्रिस लागौ एहवे एक वचनौ छाया हेठे श्रावो स्ता बलदेव पाणौ लेवा गयो एहवे जराकुमर वनमाहि क्रीडा करता मृगने वरासिबांण मूक्य ते वाण श्री नारायण पगने तलि ते उत्तम पद्म झलके के तिहां आवो लागो जराकुमार आवो देखेतो ए अपराध क्षमो बलतो कृष्ण कहे वीतरागना वचन अन्यथा नथावे तू' ताहरे ठामे जाइ हिवडा वलदेव आवे छे ते तुझने दूहवण करिस्ये जरा कुमर श्रापणे स्थानके गयो पक्रे श्रीकृष्ण जी चिंतवे के ए मुझने मारोगयो मे तो अनेक माया के ए जीव तो जाई इम चिंतवौ श्रार्तध्याने काल करोने अधोगति त्रिजौ नरके
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राय धनपतसिंह बाहादुर का आ० सं० उ० ४१ मा भाग