________________
समेलेष्टु काञ्चने यस्य स समलेष्ट कावनः तुलाकाच्चन पाषाणः पुन: कोदृशः क्रयविक्रयात् विरत: क्रयश्च विक्रयच क्रयविक्रयं तस्माहिरतो रहितः१३ क्रयविक्रये दूषणमाह (किणंतो०१४) यतोहि साधुः क्रीणन् मूलान वस्तु एहून् क्रयको भवति इतरलोक वनहको भवति तथा पुनर्विक्रौणानच वणिग् भवति क्रयविकवे वर्तमानो भितुस्तादृयो नभवति भिक्षुगुणयुक्तो नभवति सूत्रे हि भिवोर्लक्षणं एतादृशं नास्तीत्यर्थः१४ [भिक्खियध्वं न केयव भिक्खुणा भिक्तपत्तियाकयविक्की महादोसो भिक्खावित्ती सहावहा१५] भिक्षुणा साधुना भिवितव्यं याचितव्यं न तु साधुना के तव्य मूलान हटादौ गृहीतथ्य * कोयन भिक्षुणा भित्तिना भिक्ष यात्तिरदरपूरणं यस्य स भिक्षावृत्तिस्तेन यतोहि भिची: क्रयविक्रययोर्महान् दोषोस्ति साधोभिचाहत्तिः सुखाव हास्ति भिक्ष यातिभिचावत्तिः सा सुखं प्रावहति पूरयतौति मुखावहा सुखपूरका १५ [स मुयाणं उछमे मिला जहा सत्ताकदियं साभालाभं मिसं
नपत्यए। समलेट्ट, कंचणे भिक्खू बिरए कय बिक्कए १३। किणंती कडूओ होइ बिक्कणंतोय बाणियो। कयं बिजयंमि वर्सेतो मिक्ख न हव तारिसी १४॥ भिक्खियचं नकयब्ब भिक्खु खा भिक्खुवित्तिणा। कय विक्की महादसा
भिक्खावित्ती मुहावहा १५ ॥ समुयाणं उंछ मेसेजा जहा मुत्त मणिंदियं । लामा लामंमि संतुढे पिंडवायं चरे ॐ सरिखो पाषाण भने सुवर्य जेहने एहवो साधु विरम्यो ओससोछे क्रयलेवा थको विक्रयवैचिवा धको १३ मोले क्रयाणे लेतु लोक सरीखो ग्राहकहदू * कयादिवे चतुवाणीयो हुइ व्यापारि थाइ क्रय लेवो विक्रय वेचतु साधूने होइ तेहवो सूत्र बोल्यो१४ तु स्य कर भिक्षा मांगियो परं मोलि लेवु
नही चारित्रे भिक्षामांगिवे वत्तिया जीविका जेहने क्रय विक्र यतो मोटो दोषछे भिचाई वर्तिवो ते सुखनी आपणहारछे १५ घणा धरनि समुदाय
रायधनपतसिंह वाहादुर का पा०स०.४१मा भाग
भाषा