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________________ ए.टौका 8 इयं च सामानयोपकमपि वैमानि कनिकायविषय तदा या तब सौधर्मे शानदेवानां जघनोत्तष्टाभ्यां एतावदायुर्वर्त्तते उपलक्षणाच्छ पनिकायामपि * तेजोले स्थायास्थिति या ५२ [दसवाससहस्माई तेजएठिईओ जहस्त्रियाहोइ दोबुदहीपलियोवम असखभागच्च उकोसा ५३] तेजोले गायाः स्थिति दशवर्ष सहयाणि जघनयाभवति तथा पुनसागरोपमे पलपोपमासंख्येय भागयुक्त उत्कष्टास्थिति स्त जोले स्थायाभवति तत्र व्यन्तरभवनपतिदेवान* आथित्यतेजी ले खाया स्थितिर्दशवर्ष सहयाण्यता पुनः सागरोपमेपल्पोपमासंख्ये य भागयुक्त इयंत द्वितीय देवलोका पचया तेजी से प्याया उत्कष्टा स्थितिरुक्ती ति तात्पर्य ५३ जातऊएठिई खलुउक्कोसासाउसमयमभ्भहियाजहब्रेशंपम्हाएदसउमुहुत्ताहियाइउकोसा५४] या तेजोले यायाः खलुनिश्चयेन उत्कष्टास्थितिवर्त ते सातुसाएवस्थितिः समयाभ्यधिका पद्मलेश्यायाःस्थितिज्ञेयाइयंतुपद्मले या जघन्य स्थितिस्तृतीय सनत्कुमार देवलोकापचयाभवति उत्कष्टातुपालेभाया दयसागरीपमाणि अन्तमहाधिकानि स्थितिर्भबति इयञ्चपद्मलेथायाः स्थितिपञ्चमब्रह्मदेवलोका पेक्षयाने या५४(जापम्हाएठिई असंख भागच उक्कासा ५३ ॥ जा तेऊए ठिई खलु उक्कोसा साउ समय मम्भहिया। जहन्ने पम्हाए दसउ मुहुत्ता हियाई उक्कोसा ५४ ॥ जा पम्हाए ठिई खलु उक्कोसा साउ समय मम्महिया। जहन्नेणं मुक्काए तित्वीस मुहुत्त मम्म राय धनपतसिंह बाहादुर का पा.सं.उ.४१ मा भाग 8 व्यतरपा श्री सागरोपम २ पने पलयोपमनी पसंख्यातमी भाग उत्कृष्टौ जे तेजी ले स्थानी थिति वीजा देवलोकनी अपेक्षा ५३ तेजो ले स्थानी थिति निचे स्य उत्कष्टो तह समय एक अधिक जघना पनले स्थानौ थिति सागरीपम १. अंतमहत अधिक उत्कष्टी स्थिति पद्मले स्थानी व्रम्ह देव.* लोकनी अपेक्षा ५४ जे पाले स्थानी थिति नियं स्य' उत्कष्टौ तह समय अधिक जाणवी जघना शलले स्थानी थिति कट्ठा देवलोकनी अपचाइ १२६
SR No.007381
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1879
Total Pages1112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_uttaradhyayan
File Size32 MB
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