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________________ विषय और प्रश्नादि पत्राक क्रोधम० अतीत इत्यादि अधिकार | ८१९ यह क्रोधसमु० यायम्लोभसमु० समवहता समग्रहत मे कौन किस्से ८२३ कितने छानस्थिक समु० ६ कहे बेदना याव दाहारक ८२५ नारकी को ४ बास्थिक, असुर को ५, एके द्रिय को तीन । वायुको चार । तियत्र पधे - द्रिय को पाच । मनुष्य को ६ वेदनt समग्रहत जीव जिन पुद्गलोको छोडै उनस कितना क्षेत्र पूर्ण, कितना स्ष्टष्ट इत्यादि नि रूपणाधिकार ८२७ के लि० समवत अनगार भावितात्मा जो चरम निर्जरापुद्गल सो सूक्ष्म है, सर्वलोक को विषय और प्रश्नादि पत्राक फरस के रहें इत्यादि अर्थनिरूपण | ८३५ छक्तस्थ मनुष्य उन निर्जरा पुनलो के वर्ण गन्धा | दि आणे नही ८३६ काहे से कंबली समु० की करे ४ क्म क्षीण न होने से करे ८३७ कोई केयली समुद्घात करे नहीं भी करे, उहा २ गाथा है, ८४० को ८२६ | प्रावर्जन कितने समय मे होता है, केबलिसमु० कितने समय मे होता है ८ मे इत्यादि ८४१ तथा समु० गत जीव मनायागादि तीन योगमे से कौनसा योग करे ८१२ तथा समु० गत जीव सीके यूके मुक्त होय इत्यादि ८४३ मुनिर्वर्त्तित जीव कौनसा योग करे ८४४
SR No.007380
Book TitleAgam 24 to 33 Das Prakirnak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1886
Total Pages388
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Conduct
File Size8 MB
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