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विषय और प्रनादि
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पत्राक सख्यात द्वीप ७६९ सौधर्म देव जघन्य अगुल प्रसख्यातभाग उ०नीचे रत्नप्रभा का नीचे का चरमान्त तिरछा असख्य द्वीपसमुद्र, ऊपर अपना विमान । एव इशानदत्रभी, सनत्कुमार भी ऐसे नीचे शर्करा का नीचला चरमान्त एव माहेन्द्रदेव मी, ब्रह्म लान्तकदेव सिर्फ नीच तीसरी का नीचेका घरमान्त, महाशुक्र सहखार चौथीके नीच का चरमान्त, ध्यानतप्राणत मारण म च्युत देव नीच पाचमी घूमप्रभा के नीचे का श्रमान्त, नीचे मध्यम मैत्रेयकदेव नीचे बही के नीचे का चरमान्त, उपरिमयैवेयक देव ज० अगुल असख्यात भाग उ० सातमी के
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विषय और प्रनादि नीच का चरमान्त, तिरछा असख्य द्वीपसमुद्र, ऊपर स्वविमान ७७० मनुप्तरोपपातिक क्षेत्र सभिनलोक नाही आगे, नारी का प्रत्रधि क्षुरप्राकार, असुरकुमार या वत् स्तनितकुमार का पल्यक के आकार, चेद्रिय तिर्यच का नानाकार है, मनुष्य का भी एव, यानव्यन्तर का पटहाकार, अतिपी का कालकार । सौधर्म देव का ऊर्द्धमृगाकार एव प्रच्युतदेव पर्यन्त है, मैत्रयक का पुष्प चगेरीसमान, अनुत्तरदय का जबकी नाली के आकार ७७१
नारकी यावत् स्तनितकुमार ययधि के भीतर ) है के बाहिर, भीतर है, पवेद्रियतियच घा