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पत्राक
विषय और मरनादि
fare और प्रश्नादि
को कहा तै इहा मी कहना सर्व वनस्पति |
है प्रक्षेपाहारी नही एक एकेद्रिय भी ७३४ काय पयन्त एवमेय | ७२६ | सर्व देव भी पूर्ववत् वैमानिक पयन्त, द्वीन्द्रिय | द्वीन्द्रिय आहारार्थी है, एव पूर्ववत् सर्व कहना से मनुष्य तक दीनु है, नारकी ओजाहारी है। यावत् प्रपयत् पर्यन्त ७२८ मनभी नही, एव स्य देव यावद्वैमानिक एव त्रिचतुरिन्द्रियाहारार्थ, आहार कालादि नि दीनू है इत्यादि निरूपणाधिकार ७३५ रूपणाधिकार ७२९ (१ उद्देशा पूर्ण ऊमा ) मनुष्य आहारादि निर्णयाधिकार यावत् सर्वाध सिद्ध देव तक कहा ७३० नारकी क्या एकेद्रियशरीर पाहारे के यावत्पचे द्वियशरीर आहारे, एव स्तनितकुमारपयन्त पृथिवीकाय प्रश्न, द्वीन्द्रिय एव यायच्चतुरि न्द्रिय इत्यादि जिसके जितनी इंद्रियशरीर उस्का उतनही का आहार, नारकी लोमाहार
पत्राक
आहार भविय सती यह गाथा, जीव आहारक मी है अनाहारक भी है ७३६ एष नारकी यात्रत् असुरकुमार यायवैमानिक सिद्ध अनाहारी है, एवं बजवचन से भी आ लाया कहना ७३७ |भवसिद्धिक प्राहारक अनाहारक भी है, एव वैमा निक पयन्त एव भवसिद्धिक नोभवसिद्धिक