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________________ 56 रायपणी । दिव्व देवाणु भाव ल पत्त अभिसमन्नागय त इच्छामिण देवाण प्पियाण भत्तिपुव्व ग गोयममायाण समयाय निग्गधाण दिव्व देवहि दिव्व देवज दिव्व देवाणु भाव दिव्व वत्तीसइव गट्ट विह उवदसित्त ते तयेण समर्ण भगव महावीरे सरियाभेण देवण एव बुत्तोमार्ण सरियाभस्स देवस्स एयमट्ठ नोटाइ नोपरियाणाति तुमणीए म चिह्नत्ति ततेास स. रियाभेदेव समण भगव महावीर दोच्चपि तच्वपि एव वयासी तुम्भेण भतेसव्वजाग उवदसित्तए त्तिक्कद्दू समण भगव महावीर तिक्ख तो पाया हि प्रयाणि करें "२ ता वन्दद्र नमसति व उव्विय समुग्धारण देवद्युत दिव्य देवानुभाव लब्ध देशान्तरमपि किञ्चित् भवति तत श्राह प्राप्त प्राप्तमपि. किञ्चिदन्तरायवशादनात्मवश भवति तत श्राह । अभिसमन्वागत तन (इच्छामिया) मित्यादि इच्छामिणमिति पूर्ववत्, देवाना प्रियाणा पुरती भक्तिपूर्वक बहुमानपुरस्सर गीतमादीना श्रमणाना निगुन्यानीदेव्या देवईि दिव्या देवद्य ति दिव्यं देवानुभावमुपदर्शयितु द्वावि गत् प्रकार नाटयविधि नाटरविधानमुपदर्शयितुमिति, (तरण) मयादि । तब श्रमणो भगवान् महावीर सूर्याणि देवेन एवमुक्त सन सूयाभस्य देवस्य एतमनन्तृपतिमथ नाद्रियतेन तदर्थंकरणायादरपरो भवति नापि परिजानाति अनुमन्यते स्वतीवीतरागत्वात् । गीतमादीनाञ्च नाट विधि' स्वाध्यायादिविघातकारित्वात केवल तूष्णीव य, एवमनन्तश्चायतीयमपि वार तृतीयमपि बारमुक्त' सन भगवानेव मेव तिष्ठति (तरण) मरिचतुरामक्या बुडा तत्वमवगच मोनमेव भगवत उचित न पुन किमपि वक्तु केवल मया भक्तिरात्मीयोपदर्शनीयेति प्रमोदातिभयतो जायते, जातपुलक सन् सूयाभी देव श्रमण भगवन्त महावीर वन्दते स्तोति नमस्यति देवानुप्रिय तुम्हारीभक्तिपूर्वक अनगोतमादिक श्रमण तपस्वीने निग्र घतेहनदू प्रधान देवनीऋि प्रधान देवनीकाति प्रधान देवतानु सामर्थपणु प्रधान छवीसबद्ध नाटकविमति देषाडु बाबु छु तिहारपछी श्रमण भगवत महावीर मूयाभ देवद्र एमकहिथकर सूयाभदेवता एहवा वचनप्रति दरनदेव आज्ञापथिनदेद्र अणबोलाथकार हैजउनाटिकनी बाज्ञादेइभगव तनुमाव धलीगडू निषे धरतु सूयाभनीक्तिभाजद्द दूद्र कारण अणबोलार हियापछे मूयाभविचारजे साधुन विविधनपेध करिवृ तेमाटद्भगव तबोलतानथीमिश्रधानकिसाधुन इमोनिये य जगनाथनुयुगत कविमन था ानीनदू भगवतच्छुद्र तेतानक्रिकरइतिठारपछीतेह सूर्याभदेव श्रमस्य भगव तमहावीरप्रति बिवला पिवळेला एमबोल तुमेदेभगव त सब जााउपूर्ववत्शब्द इपाइनु पाठसर्व कहिवुताटिक टेपाडवू "
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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