SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ रायपमणी। एव बवासी अत्यिण भ ते जावनोवागच्छ एव खनु भते जाव विहरामि ततेण मम नगरगुत्तिया चोर उवणेति ततेया अह त पुरिस जीव तगचेव तुले २ ताशविळच अकुच्चमागो जावोतातो ववरोएमि जीविताउ ववरोविया मय तुलेमि २ नोवण तस्स पुरि सस्स जीवितस्स वातुलिवस्स मयस्स वा तुलियस्स नत्यि कई अणते वानाणत्ते वा उम्मत्ते वागावते वानहुतं वा जतिण भ ते तस्स पुरिसस्स जीवितस्म वा तुलियस्स मयम्स वा तुलियस्स हो उझाति अणतं वा जाव लहुवत्त वा तोया अह सद्दमा २ तचेव जम्हाण भ ते तस्स पुरिसस्स जीवियस्स वातुलियस्स वा तुलि यस्स नत्यि के प्राणते वाललहूवत्त वा तम्हा सुपतिट्ठियामोत्ति राणा नहातज्जीवो तचेव तएण केसी कुमार समणे पएसिराय एव बयासी त अस्थिण पर्देसी तुम्हे कन्नाद् वत्योधतपुब्वे वाहता पाथव' प्राणातिपातादि । आहारनीहारीच्छासनिश्वासाद्विद्युतय' प्रतीता'। इटुरक महन् पिठक येन समस्तापि रथवतीस्थग्यते। गोकलिज नाम यव गोभक्त प्रतिप्यते पत्रिका पिठक च प्रतीतम। गण्डयुक्तामाणिका देशविशेषप्रसिद्धा। आटकाद्वाटक प्रस्थकाई प्रस्थाकुल वाद कुलवामगधदेशप्रसिद्धा धान्यमानविशेष', चतुभागि काप्टभागिका पोडशिका दावि भाका पछी तह हेप्रदेसी राजा कैसी कुमार थमण प्रति इम बील्युछ पूज्य द्विवलइएइहाटात पणिए दृप्टात जीवतत्तमाहरदूहाइनीवद अमनामकारी निश्चर हेपूज्य कोद्रकसमद राज सभा विचर छउ तेणदूसमयमुझने नगर कोटवाल चौरन बाधीनसुपताहयातिहारपछी ह पुरुषप्रति जीवतउजेतीलउतुर्उतीलान चर्मक अणकरराजघकद एतल सम्रविना जीवधकी रहिनकरराउ एतलबूटु पुदेइमारजीवथकी रहितकरीनमुवा चीरप्रति तोलार पणि नहीन तेहनइ पुरुपनद जीविताना तोलीनद अथवा मुआपछी तोलीन नथी कादू घोडउ घण मानद भारघाउ अथवाहतू आपणु जउ हपूज्य तेहनद पुरुपनः जीवितानद तोल्या नद अथवा आपछी तोल्यानद इतउ काइक घोडउ भारपणु अथवा इजु श्रापणउ तउ हू सदहतमानतजसरीरयीनीपतेरउ अन जीव सरीर अनेरउ जेणइकारण हेपूज्य तेहनद पुरुष नए नीविताना तालीन अथवा मूचान तोल्यानइ नधी काद धोडउ भारेपगु इलू पापा तणकारण साचीमाहरि प्रतिमा वृद्धि नैह शरीरवहानजीवतेसरीर अनपूर्वनीपरि प्रदेसी
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy