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रायपर्मगी। सामी आसाण मम किलाम पवीगामो ततेणसे पर्देसीरहातोपच्चो समति विर्तगा साराहिगा सद्धि प्रासापा सम किन्तास मपदीगों माणे पास जत्य केसीकुमार समगो महति महालियाए मगुस परिसाए मझमएव महवा २ सहेगा धम्ममाइक्खमाण पासति पाप्तित्ता इमेवामवे अभत्यिण सकप्पे समुप्पवित्या जडाखनु भोजडु पज्भवासति मुडा ग्वलु भोमूड पज्भवासति मूढा खलू भो मृढ पझवासति अपडिय पकवासति निविमागणो खलू भौति विगणोण परमवासति केसति केसण एसपुरिसेजडेमृडे मूटे पय डिनिधिगणाराणासिरीए हिरीए उवगए उत्तप्पसरीरे एसण पुरिसे किमाहारेति किखाइ किवति विदलयति किपयच्छति जणएम पुरिसे मइति महालियाए मगुस्सपरिसाए मभगते मइया सदेण
वूपाइ एवमपेहेछ २ चित्त मारहि एवववासी चित्ता जडाखनु न नलु कदल्लक्षणे एव रूपाया भरीरकान्त कपपत्ति। कण्डूत्यादि सदावविधायत्व प्रमले स्तथा, कि परिणामयति कीदृशीस्य गृहीताहार परिणामी न खलु शोभनाहाराभ्यवहारपि मन्दाग्नित्वं यया रूपाकान्तिभवति एतदेव सविशेषमावाटे कि खादू कि पिय तथा कि दलय इति कि ददाति एतदेव व्याचप्टे कि प्रयच्छति येनैतावान लोक' पर्युपापास्ते एतदेवा जयपणे ए
मोटई सन्दू धर्मकहिवा मतिदेपानद एहबुकिहिजेहा आगलिक हास्यै आत्मानइवि पर सकल्प अपनी लड़ामूपपणा खेश्चे पाहाएकजड प्रति सेवाकर मस्त मूडिते मूडा निथय पही मूड प्रति सेवाइन मूढतषणू मूथ निश्चय मूढ प्रति सेवक अपडित ते महामुपे निश्चय अहो अपडितमति मैवछद्र निखनकला चतुराद रहित निश्चय अही निविज्ञान प्रतिसेवापछद कु पएक पुरुप एह पुरुष जड मूठ हे मूढ अपडित निविज्ञान असाभाइकरा झीलजाइकरी सहित देदीप्यमान सरीर एहपुरुषसु आहार आहारडछद स्फखाडकद स्पाइक पाश्ववत्तिन इसेवाज्ञय बद्र देव द स्यु क्सेपपणखरच देवा जेण पूकारण एह पुरुषमोरयी महा विस्तारद मनुष्यनापरिप्यदाइ माहि बद वह मोट २ सब्दद करी बोलकर मस्तिवाचीत कदवान चिन सारघापति इम बोल्प है वि १६ " . यही एकजडमति मेरिकसभामाहि दम मर्वकहि वूजहालव
“द्यानभ मिन्ह विपर नसको सम्यकप्रकार स्वेछार विचरान इबई