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________________ रावपसेगी। जाव दप्पणा ८ तयाण तरचण चप्पहरयण विमल दड कुचण । मणिरवण भत्तिचित्त कालागुरुपवर कुटरक्क तुरुक्क धूव मघ मघत गधूत्तमाणुचिट्ठ ति धूवहि विणिमुयत वेगलियमय कडुछय' परहिय पयत्तेण धूय दाऊया जिगावराण अट्ठसय विसुद्ध गध जोहि अपुणरत्तेहि महावितेहि सघूणइ सत्तट्ठपयाहिं पवोसकदर वामजाणु अचेई दाहिण जाणु धरणितलसि तिकटू तिवृत्तो मुद्धाण धरणितलसि णिव्वोड़ेत्ति २ इसपच्चूगणमद इसिपश्चगण मित्ता करवलपरिग्गहियं सिरसावत्त मत्यएव जवूनकटू एववयासी . , णमोत्युगा' अरहताया जाव सपत्तागा वदति णमसइ जेगोव सिद्धा . (चन्दप्पभवहरवेमलिय विमलदण्ड) मिति चन्द्रप्रभवजवेडूर्यमयी विमलीदपडो यस्य स तथा तम्। कांचनमगिरत्नभक्तिचित्र कालागुरुमवरकुन्दुरुक्कतुरुक्कसक्कनभूपेन उत्तमगन्धिनानुविदा कालागुरुप्रवरकुन्दुमक्कतरुक्कधूपगधोत्तमानविड़ा प्राकृतत्वात् पदव्यत्ययरता धूपत्ति विनिमुञ्चत • वैयमय धूपकटुश्क प्रगृह्य प्रयत्नती जिनवरीभ्य' मूर्व पप्टी प्राकृतलात् सप्ताष्टानि पदानि पश्चदापमृत्यदशागुलिमज्जालमत्यए रचयिता प्रयती अहसय विशुद्धगन्यजुत हिन्ति विशुद्धी निमली लक्षगदोपरहित इति भाव'। यो ग्रन्थ' शब्दसन्दर्भतिन युक्तानि पाटणत च तानि विशुद्धग्रन्थ युक्तानि च तै अथवुक्तोरथं सारे रपुनरुमहावृत्तं स्तथाविधदेवलब्धि प्रभाव एषा, सस्तीति समुत्य(वामन्माणु राञ्चति) इत्यादिना विधिना प्रमाण कुर्वन प्रणिपातदण्डक पठति तथा (णमोत्युग मरिहन्ताण)मित्यादि नमोस्तुणमिति वाक्यानकार देवादिभ्योऽतिशवपूजामहतीत्वहन्त आठमागलीक आलेखक, तेकहदछ साथीउ१ जिहालगि आरासउाठमउमगलीकपूजा१५ तिद्वाग्पकी चद्रप्रभ पनवेंडूयरत्नमय निर्मलछद्र दडजेहनर सूवर्ण मणिरत्ननीजाति करीविचि वितकर कृप्या गुरु प्रधान गुद सिल्हारसतेहनउ धूप मधमघायमान एहवउ उत्तमगधतणकरी अनुविधव्याप्ता धूपनीवादिप्रतिपूqएहवउ वैडूर्यरत्नमय कंडुछउ गृहीनद सावधानपण धूप दीधउजिनवरभणीएतल वीथ करअनदू तीथ करनीप्रतिमाचवतरनदिपूना एकसउआठन वाकथ्यातहेवाछद छददीपरहित गघकरीयुक्त बलीपुनकदूषण रहित मोटाछ वृत्पदना बधदडकादिकमूतइकरीम्तस्तव पछदसाताठपगला छपराठउऊसरजसरीन डावउटीवण ज चउरापद जिमगड टींचण भूमितलनविपि थापर वणिदेला मस्तकभूमितल लगाडदू. लगाडीनइ काइकमस्तकउचुकर काइकमस्तकऊ चउकरीन बिडू हाथिकोधउकरमस्तबद पायप्तमदतियारुप मस्तकद अजलीकरीन एमबोलतुहूउ नमस्कारयाउ घरहतभणी जिहा
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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