________________
११२
रायपसेगी। जमल जूयल वट्टिय प्रभुणवपीणरइय सद्विवपीवर पयोहराउ रत्ता - वगाउ असियकेसिउ मिउ विसय पसत्यलक्खगासवेल्लियग्गसिरि याउ इसि असोगवरपायवे समुट्टियाउ वामहत्थगहियगसालाउ इसि अहत्यिकडख चिट्ठिएनसेमाणीउ विव चस्व लोयण लेसाहि अण्णमण खिज्झमाणीउ विवपुढविपरिणामाउ सासयभाव मुव
-
स्तथा (आमेलगजमलयलवहिय अन्भुषणयपीयरइय सण्ठिवपीवरपयोहराउ) पीन पीवर रचित सस्थित सस्थानम यकाभ्यान्ती पीनरचितसस्थानी पामेलक आपीड शेपरक इत्यर्थः । तस्य यमलयुगल समशेणीक यत युगल तहत वति ती वस्वभावानुपचितकपिठनभावाविति भावः । अभ्युन्नतो पीनरचितसस्थानी च पयोधरी यासा ता स्तथा (रत्तावष्गाउ) इति रतोऽपाभीनयनोपान्तरूपो यासा ता स्तथा,(अमियकैसिउ) इति असिता कृष्णाकेगा यासा ता अभितकैमा । एतदेव सविशेषमाचष्ट। (मिउविसयपसत्यलक्खण सर्वेल्लियग्गसिरियाउ) मृदव कोमला विशदा निर्मला प्रास्तानि शोभनानि अस्फुटितागुत्व प्रतीतानि लक्षणानि येषा ते प्रशस्तलक्षया' संवैल्लिता सवृत्त मग येषा ते सवेल्लितागा शिरजा केभा यासा ता मृविशदप्रशस्तसलक्षणसल्लितागु गिरजा, (इसि आसोगबरपायवेससहियाउ) दूपत् मनाक् अशोकवरपादपै समुपस्थिता, आथिता दुपदगोकवरपादपसमुपस्थिता स्तथा वामहस्तेन गृहीतमय शालाया शाखाया अर्थादशीक पादपस्य यकाभिस्ता वामहस्तगृहीताशाला', (ईसि अहत्यिकडक्वचिट्ठिए हिल्लसमाणीउ विवति इषत मनाक अहतियक् चलित मक्षि येषु कटाक्षरूपेषु चेष्टितेषु तैप्पयन्त्यइव सरन नानामनासि, (चक्नुल्लोयणलेसा हि अण्णमगणज्झिमाणीउ विव)अन्नमन्न परस्पर चक्षुपा लोकनेनाव लोकनेन ये लेगा सश्लेपास्तै खिद्यमानाइव किमुक्त' भवति, एव नामत स्तियग् वलितादि कटा परस्पर मवलोकमाना अवतिष्ठन्ति यथा नून परस्पर सौभाग्या सहनत स्तियग चलि ताजि कटाई परस्पर खिद्यन्ति दुवैति (पुढविपरिणामाउ) इति पृथिवी परिमामरूपा, शाम्वत
रात पोल धउलद सूबहू बधालबायमान फूलमालाना समुहवलगाडीकर तेह फूलमालीनद एतामुवानालबाफूमताछद सुवणमनीपानडीद मडितछद अगुछेहडाजेहना भारहहारिसोभित छ बिहु दसिनर वाइकरी ते दामहाल छ तेहथकी काननद मननमुखऊपजद एहवऊ सद ऊपजद छद्र तेन शब्दकरी तेहद कडीप्रदेशप्रतिमधलुचिहुदिसि विसेषथकी पूरता घकी सौभाइकरीधणउज सौभताथका रहछ तेह नागदतन अपरिअनेरीवलीहू पासद सालदूर नागरतनीपरियाटीपति कही तेह नागदता पाइलीनागदतनीपरि जाणिवामोटा हाती नाद रजेवडा या हे श्रमको आउयावती देह इस्तीनादतनविपद् घणा रूपामय सिका कह्या