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। योगनाईजो । यह व जैन धर्मका पहिला उपांग बहाता है। चोवीसमेतोर्थंकर यो वर्तमान सामी का कथा भया उनके मिचगणधर
यामोवा वनाया श्मश्रुतस्वच १ अध्ययन १०ई शक में भामाया " उपपात" का है, उसोका सविशेष वनंन इसमे सोचिए इसको 'पौपपातिका घोर उपांग करते है । 'उपपात' का पक्ष जोवा यह पुठो मे पतन उसोका पर्नन जिसमे हो तिसको 'घोपपातिक" वावे' पोर 'भोपपातिक' शब्दही वा प्राछतमापा 'भोगमाई है फिर प्रपत्र म 'उपवाई' बहाता है। इस अथके प्रणमभाग में समवसरण कया घोर प्रधवा उपोहात का है भागे दूसरे भाग में उपपात का सविस्तर निर्णय किया है फिर शेप निचोड़ २२ मायोंमे प्रगट किया है। समवसरण नाम प्रथम दस मे कमसे चम्पानगरो का वर्तन पूर्णमद्रपेत्धका वर्मम फिर उसमे प्रभाव पादप ये वर्तन सवादिवो वा वर्तन फिर उस वृचमूलमे भटकोण सिंहासन सरोसा मिथापट्ट वमन भारी भंभसार येपि राजपुत्र चित्र राधाका वनम धारियो देवो का वर्नन तिम्रो भारी मछत्तिवाहक का कथा श्रोमहावोरजी का
वर्नन योमहामोरखोला खुति उनके पहचारो राजादिकोंका वर्मन सर्वतोभद्रादिव बाद लेकर समवतोबा वनंन उनके सहचारी प्रयादिकों का वर्तन
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