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__ ये पुस्तक छपावणेका कारण ये हे के सर्वजेन धर्मावलंबि साधसाध्वी श्रावकथाविका के पढ़णेसे ज्ञानकी रही होगा इस खातर ४५ आगमसन और टीका और वालाववोधसहित ५०० पुस्तक छपाके ५०० ठीकाने भंडार कीया इस्म महान् जानका वृद्धी होगा और पंडतजनोसे एही मार्थना हेके अच्छीतरेसे पढेपढावे शुणेशणावे जयणाकरके और विनयकरके रक्खे और यह श्रीसिद्धान्त पंचागी प्रमाण संग्रहकोया और इसमें चरमचक्षु करके भल चुक रहगया होय तो मिछामिदुकडं देता और
श्रीसंघसे यह विनति हे की नौस वखत वाचे उस वखत जो भुलचुक नौकसे तो पंडतजनोसे संसोधन कराय लेवे मेरेपर कया EN करके इह प्रार्थना अंगीकार करना और भंडारकरी भई पुस्तक कोइ वेचना नहीं कोई खरीद करेनही करतो २४का गुनेगार
संघका गुनागार होगा और मेरा परिचे के वास्ते अपना पूरब वंसावली लीखता हु पछिमदेसमे किसनगढ़के वासी प्रपिता EX मह श्रीलश्रीयुक्त दुगडगोत्री रद्धशाखा श्रीलश्रीवीरदासजी संवत् १८०२की सालमे परवदेसमे आए तत्पुत्र श्रीलश्रीयुक्त बुधसिंघ EX जी तत्पुत्र श्रीलश्रीयुक्त प्रतापसिंघ जी चतुर्थ सहधर्मचारणियौलालंकार विभुशित श्रीमहताव कुवरवीवीद्वादश ब्रतधारिका तत्पुत्र लघु श्रीरायधनपतसिंघ यहादुरने वडा परिश्रमसे संसोधन कराया हे और श्रीभगवानं वीजैजीने संशोधन करा। संवत १६३३मिति भादो शुदी।
माजीमगंनं राय धनपतसिंहवाहादुर ।
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