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है कि धारा के पँवारोंने बसाई । तथा विक्रम सं० २२२ में
ओसवाल हुए इत्यादि । इन सेवगों को मांग खाने के सिवाय इतिहास का ज्ञान नहीं था कारण जैसलमेर वि० सं० १२१५ में राव जैसलने बसाया । जैसलमेर में भाटियों का राज था न कि पँवारों का । धारानगरी विक्रम की दशवी शताब्दि में राजा भोजने अाबाद की जब ओशियां ( उपकेशपुर ) श्रीमालनगर का राजकुमार उत्पलदेवने वि० सं० ४०० पूर्व से भी पहिला बसाई थी और उसी शताब्दि में जैनाचार्य रत्नप्रभसूरिने वहाँ के निवासियों को प्रतिबोध कर 'महाजनसंघ' स्थापन किया । इस विषय में प्राचीन ग्रन्थ पट्टावलियों और वंशावलियों में अनेक प्रमाण मिल सकते हैं ।
(१) आचार्य रत्नप्रभसूरि पार्श्वनाथ के छठे पट्टधर थे। पार्श्वनाथ और महावीर के बिच में २५० वर्षों का अन्तर और महावीर प्रभु से ७० वर्षो में आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशपुर (ओशयों) में पधार के महाजन संघ स्थापन किया अर्थात् ३२० वर्षो में छ पट्ट होना युक्तियुक्त है, पर वि० सं० २२२ में ओसवाल हुए माना जाय तो पोर्श्वनाथ प्रभु से ८४२ वर्ष में रत्नप्रभसूरि होना चाहिये । ८४२ वर्षों में ६ पाट्ट होना बिलकुल असंभव है। दूसरा महाजनवंश स्थापन किया उसी अर्सा में वहां महावीर प्रभु का मन्दिर की प्रतिष्ठा आचार्य रत्नप्रभसूरिने करवाई जिस विषय में कहा है कि
सप्तत्या वत्सराणं चरमजिनपतेर्मुक्तजातस्य वर्षे । पंचम्यां शुक्लपक्षे सुरगुरुदिवसे ब्राह्मणसन्मुहूर्ते ॥ रत्नाचार्यैः सकलगुणयुक्तः सर्वसंधानुज्ञातैः । श्रीमद्वीरस्य बिम्बे भवशतमथने निर्मितेयं प्रतिष्ठाः ।।