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________________ १९ का जमाना में विद्वान तुमारी इन निराधार गर्ने को सच्च समझ लेगा ? हरगिज नहीं । सेवगों ! तुम्हारे पूर्वजोंने शिवलिंग पूजने से इन्कार क्यों किया होगा ? क्या लिङ्ग की स्थापना योनि में होने से शरम या भय हुआ था और तुम लोग प्रतिज्ञाभ्रष्ट हो फिर लिंग की पूजा, उपासना करने लग गये तो यह लिंग से प्रेम किस कारण हुआ ? आगे चल कर कवि तेजने अपनी किताब में घसोट मारा है कि कोई व्यक्ति एक भोजक को अपने घरपर बुलाकर भोजन करवाता है उस के वहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सूर्यादि सब देवता जीम जाते हैं । इस विषय में तो सेवगोंने वैकुण्ठ की सड़क ही साफ करदो है । पर आज पर्यन्त किसीने इस वाक्यों को स्वीकार नहीं किया, कारण ब्रह्मकर्म और तपजप, क्रियाकाण्ड करानेवाले आर्य ब्राह्मणों को छोड कर इन कुंडापन्थी अनार्यो को भोजन करवाने में कुत्तों को टुकडा डालने जितना ही पुन्य शायद ही होता हों ? इस कारण ही सेवग ओसवालों के यहां मजूरी करते हैं और खीचखाटों व आटा मांग कर अपना गुजारा करते हैं । उसी किताब के आगे के पृष्ठों पर अंकित है कि मग विप्रों की स्त्रियों कों सूर्य को स्त्री समझ उनके सामने नहीं देखता । इत्यादि इस विषय में विशेष लिखने की आवश्यक्ता नहीं है । लेखक के समय सेवगनियों की चालचलन कैसी होगी वह लेखक के इस गूढ वाक्य से ही पाठक स्वयं समझ सकते हैं । यह है ब्राह्मणों की करतूत का नमूना । आगे ओशियोंनगरी के बारा में कवि तेजने लिखा है कि ओशियां जैसलमेर के पँवारोंने तथा जयलालने लिखा
SR No.007300
Book TitleLo Isko Bbhi Padh Lo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRishabhdas Mahatma
PublisherRishabhdas Mahatma
Publication Year1940
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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