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शतुवंती नारीना श्रासन उपर बेसवाथी सात आंबिलनी आलोयण देवी पमे , अने तेने जाणे जमवाथी बार बच्नी आलोयण श्रावे ने अने शीयलना नव गढ कह्याने ते शिथिल श्रा जाय . रंतुवंती नारीने आजड्यां रे, बघ्नु पाप लागे । वस्तु देतां येतां अमनोरे, कहो केम दोष नागे।एए॥
ऋतुवंती स्त्रीने अमवाथी बन्नु पाप लागे , अने वस्तु आपवा लेवाथी अज्मनो दोष श्रावे . आवो दोष कहोबीजी शीरीते दूर थाय ? . खाधुं जोजन नारी हाथर्नु रे, जव लाखनुं पाप ॥ जोग जोग नव लाखनुं रे, वीर बोले जबाप ॥६॥
आवी नारीना हाथर्नु जो नोजन करवामां आवे तो लाख जव पर्यंत संसारमा ज्रमण करवू पके,अने तेनीसाथेनोग करवामां आवे तो नव लाख लव करवा पमे. या वात वीर प्रतुए एक प्रश्नना उत्तरमा जणावी : साधु साख नारी नोगथी रे, जोजन पाप अघोर ॥ नरक निगोदमांजव अनंतारे, कर्म बांधे कगेर ॥६॥ - साधु पुरुषनी सादीए एम कहीए जीए के एवी नारी साथे लोग करवाथी अने नोजन करवाथी अघोर पाप बंधाय बे, अने नरक-निगोदमां अनंता नव जमवा उतां तेनो बुटको थतो नथी, कारण के ते एवां कगेर कर्मो बांधे .