SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २) साथे श्राप लेनो व्यवहार राखवाथी घणुं पाप लागे जे. आ वातने आपणा जैन सिद्धांतो तथा पंचागी पण टेको श्राप बे. पहेसे दाहाडे चांमालिणी कही रे, ब्रह्मघातक बीजे॥ धोबण त्रीजे चोथे दिवसे रे, शुधनारी वदीजे ॥५॥ • शतुवंती नारीने प्रथम दिवसे चांमालणी जेवी समजवी, बीजे दिवसे ब्रह्मघातक जेवी समजवी अने त्रीजे दिवसे धोरण समान लेखववी. चोथे दिवसे न्हाइ धोइने शुद्ध थाय त्यारे पवित्र लेखववी. माकण साकण कामणना रे, मंत्र पामशो खोटा ॥ देवनुंसाधन अथ्थमशेरे, मत वालजोगोटा ॥५६॥ __ जो शतुवंतीनो संसर्ग राखशो तो माकण, शाकण अने कामणना मंत्रो खोटा पामशो अने कोइ देवनुं साधन हशे तो ते पण आश्रमी जशे, माटे ए बाबतमा गोटा वाळशो नहीं. रतुवंतीनुं मुख देखतां रे, एक आंबिल दोष ॥ वातमी करतां रागनी रे, पांच आंबिल पोष ॥५॥ शतुवंती नारीनु मुख मात्र निरखवाथी एक आंबिलनुं प्रायश्चित्त लागे जे, अने रसपूर्वक एटखे के जो होंशथी तेनी साथे वात करवामां आवे तो पांच आंबित करवां जोइए. आटर्बु प्रायश्चित्त शास्त्रमा कडं . झतुवंती श्रासने बेसतां रे, सात आंबिल साचां ॥ बहबार तास जाणे जम्या रे,नव गढ होये काचा॥५॥
SR No.007299
Book TitlePushpvati Vichar Tatha Sutak Vicahr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhimji Bhimsinh Manek
PublisherBhimsinh Manek
Publication Year1916
Total Pages40
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy