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'तुवंती खातां जोजन वध्युं रे, ढोरने लावी नाखे ॥ जव बार गुंमा करवा पडे रे, चंद्र शास्त्रनी साखे ॥६॥
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चंद्र शास्त्रनी साक्षीए कहेवुं पडे बे के रुतुवंती स्त्रीना जाणामां जे जोजन वध्युं होय ते जो ढोर ढांखरने खावा देवामां आवे तो बार जव जुंकी रीते जमवा पके. रजखला वहाणे समुद्रमां रे, बेसतां बढ़ाण डोले ॥ जांगे कां लागे तोफानमां रे, माल वामे कां बोले ॥ ६३ ॥
रजस्वला बाइ जो वहाणमां बेसे तो ए वहाण पण मोलवा लागे बे, अनेकां तो वचमां जांगी जाय बे के तेने तोफान लागे बे, तेथी अंदरनो माल पाणीमां वामवो पके बे अथवा वहाण डूबी जाय बे.
लख जव जाण अजाणमां रे, लघु वम जव आठ ॥ जव लाख ने बाएं घातमां रे, एम शास्त्रनो पाठ ॥ ६४ ॥
उपर कह्यो ते दोष जो जाणतां थाय तो लाख जव ने अजातपय जाय तो नाना मोटा व जव करवा पसे, छाने एक लाख ने बाणुं घातो सहन करवी पके, एवो शास्त्रनो पाठ बे. धर्मवाली नारी नाई धोइ रे, संगमें जोजन खाय ॥ पुत्ररत्न पाने संपदा रे, देवलोकमां जाय ॥ ६५ ॥
धर्मवाली बाई चोथे दिवसे न्हाइ धोइने सौ साथे जोजन करे. यावी बाइने जे पुत्र थाय ते रत्न जेवो थाय छाने बहु संपत्ति प्राप्त करे एटलुंज नहीं, पंण एवी बाइ आयुष्य पूरुं श्रये देवलोकमां जाय.