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(४) उपरोक्त कवितामें सेवग तेज कविने स्पष्ट लिखा है कि जैन धर्मके आदि तिथकर ( भगवान ) ऋषभदेव के दादा के गुरु मगविप्र (भोजक) थे।
जैनियो जरा आंख खोलकर देखो कि तुम्हारे ही याचक ( मांगने वाले मगते ) आज आपकी वैदरकारी से आपके ही पूज्य पुरुषो के गुरु बनने को तैयार हो रहे है । क्या आप इसको सहन कर सकते हो ? कदापि नही। अतएव एसे पाखंडीयों का पोषण करना मानो जैन धर्मका ह्रास करना है। सेवग लोग कौन है ? वह आगे की पत्रिका देखे ।
पत्रिका नम्बर २ जैन आर्य है और सेवग अनार्य हैं। सेवग लोग अपने को शाकद्वीप से आये हुए बतलाते हैं। शाकद्वीप अनार्य देश है। उस अनार्य देश से आये हुए सेवग लोग भी अनार्य है। यह बात सत्य होना भी संभव है। क्योंकि भारतीय चौरासी न्यातिके ब्राह्मणोंमें से कोई भी ब्राह्मणोंने इन अनार्य सेवगों के साथ आज पर्यन्त रोटी या बेटी व्यवहार नही किया। इतना ही नही परन्तु भारतीय ब्राह्मण अपने चौके में भी सेवगों को नहीं आने देते हैं बलकि चोका के बाहर बैठाके उपरसे रोटी डाल देते हैं। इससे यह बात साबित होती है कि सेवगलोग वास्तव में अनार्य है । शाक द्वीप में मगों के पूर्व तीन ही वर्ण होना बतलाते है। यही अनार्यों की निशानी है