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(३१) (७) विवाह जैसे मांगलिक प्रसंगपर 'डफोलशंक ' नही
बजवाना कारण ये चीज अमंगलिक है । इसी कारण से किसी जैनाचार्यने डफोलशंखों को मन्दिर के मूल गंभारे के बाहर गढ़वा दियाथा इसी कारण हरेक मन्दिर के मूल गम्भारे के दाजे के बाहर इसकी ( शंख ) की शकल खुदी दुई रेहती है कि जिसको देखकर इसका उपयोग न करावे । मात्र दक्षिण मूर्ती
शंख ही मंगलिक माना गया है। (८) इसी प्रकार विवाह के प्रसंग पर एक छप्पैया कहते
है वह कतैई बंद कराना चाहिये। इस छप्पैया मे क्या है । *सताइसै सात आठ अठारातीसा, छे छे छतीसा
___“ तीन तेरह तेतीसा" बयालीस बावन चार बारह बहुत्तर अउर चौसठ पांच पन्द्रह इकवीसा नव नव चहदह रयण दिन, चाहडजांपे अभयभुव । गुरु मुख प्रमाण हि त्याणसु, ऐते इच्छ करंत तुव ॥
जैनियों को “ तीन तेराह तैतीसा" करनेवाला यह छप्पैया ही है अतएव विवाह जैसे मंगलिक प्रसंग पर हरगीज न बोलने दें उनका सर्वथा बहिष्कार करना ही उचित है अतएव सब जैनी इनका बहिष्कार कर दे तब ही आप सुखी हो सकोगे॥
* इस छप्पैया का भावार्थ रिषवदासजी के लेखसे समझो।