SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७) बिचार हुआ कि अब क्या करना । इसका निर्णय करने के लिये किसी एकग्राम में वहाँ के सब जैनी एकत्र हुए और उपरोक्त प्रश्न उनकों सामने रखा गया। इस पर सब विचार करते है। एकने-सेवगोंको निकालने में तो मेरी सम्मति है पर मन्दिर पूजे कौन ? दूसरेने--मन्दिर साध या रावल से पूजाया जाय। तीसरेने-फिरतो वही हालत होगी जो सेवगों से हो रही है। चोथेने-जिस प्रकार दिगम्बर जैन (श्रावक) अपने हाथ से पूजा करते है। नोकर चाकरों के भरोसे मन्दिर नही रखते है वल्कि अजैन पूजारियों को अन्दर मूळ गम्भारामें नहीं जाने देते है। छोटे से छोटे ग्राम में भी श्रावक हाथ से पूजा करते है वैसे ही बडे नगरों में प्रथा है फिर अपने भी हाथों से पूजा क्यों न करें ? पांचवेने-पूजन पक्षालन तो अपने भी हाथों से कर सकते हैं पर दिगम्बर मन्दिरों में सोने रुपे के कोई पदार्थ नही होने से उनको सुविधा रहता है । पर हमारे मन्दिरों में तो अनेक जोखमी चीजे रहती है उसकी जिम्मे वारी कोन लेता है ? छठेने-वीतराग देव के यह जोखम क्यों रखनी चहिये क्योंकि अपुन जो सेवा पूजा भक्ति करते है वह वीतराग अवस्था की करते है न कि सीने चांदी की। सातवेने--सोने चांदी के मुकुट कुंडल आदि आभूषण आज
SR No.007296
Book TitleAnarya Krutaghni Sevago Ki Kali Lartoote
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimal Jain
PublisherMishrimal Jain
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy