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( २६ ) होता ही जायगा।और अन्तमे तुम्हारी जातिका अन्त हो जायगा। अतएव अपना भला चाहो तो पराधीनता की बेडीयें को शीघ्र ही तोडदो, तुम्हारे अन्दरसे जिन्होने उपरोक्त कारण समझा है वे तो स्वतंत्र व्यापार उद्योग में जीवन गुजारते है। तुम भी अपने उन भाइओंका अनुकरण करके सुखी बनो। यदि तुमको जैन मन्दिर ही पूजना है तो वेतन से काम करो किन्तु देवद्रव्य कदापि भी मत लो। यदि लो गें तो डूब जाओगे, नाश हो जाओगे, इस भवमें और परभव में तुम्हारी दुर्दशा होगी । हम तुम्हारे हितके लिये कहते है सो मान लो वरना " चिडिया चुगगई खेत" वाळी कहावत चरितार्थ होगी।
पत्रिका नम्बर ९ जैनो आपके मन्दिर कौन पूजेगा? जब अधर्मी नोकर पूजारियों को मन्दिरोंसे हटाकर आप अपने मन्दिरोंकी आशातना से बचना चाहते हो तब प्रश्न यह पैदा होता है कि "जैनों आपके मन्दिर कौन पूजेगा?
जैन मन्दिर निर्माण करने वालॊका इरादा यह होता है कि प्रत्येक प्राणि आत्मकल्याण के अर्थ ही भगवान की सेवा पूजाभक्ति करे पर कालान्तर से वे आत्मकल्याणको भूलकर मोक्षदाता वीतराग देवकी सेवा पूजा स्वयं छोड विधर्मी भाडूती नोकरों के सुप्रद कर दिया है जिसको न तो भक्तिका प्रेम है और न आशातना काही भय है । जब आशातना अपनी चर्म सिमा तक पहुंच गई तब जैनों को