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( २५ ) यदि आप समाज के ढाई किरोड़ रूपये विधर्मीयों के हाथ जाता हुआ बचावेंगे। तो देवद्रव्यका रक्षण होंगा । स्वाधर्मि भाइयों का निर्वाह होगा। और मन्दिरों की उन्नति में अपनी उमति होगा। शुभम् ।
पत्रिका नम्बर ८
सेवगो को हित शिक्षासेवगों ! तुम्हारे अन्दर कुछ जीवन का अंश है ? यदि हे तो निम्न लिखित बातों पर ध्यान दो। इस वीसमी शताब्दी में पराधीन रहना कितना महा पाप है ? तुमको जैनियों के घरों में ढोली, सरगडा और नाईयोंकी पंक्ति में रह कर हलके से हलका काम भी करना पडता है । यहां तक कि पत्रिका नम्बर ३ में दर्ज है। तुम्हारा कुत्ते से भी जियादा तिरस्कार होता है । एक ओरतके एक ही मालिक होता है परन्तु तुम्हारे तो जो आता है वही मालिक बन जाता है और तुम्हारा तिरस्कार भी करता हैं । रात दिन गधे की तरह काम करने पर भी इच्छित लाभ नहीं मिलता है जो कुछ मिलता है वह भी तिरस्कार फटकार और अपमान पूर्वक मिलता है। जिस देवद्रव्य को खाना जैनी महान् पाप वो नाशकारी समझते है वही निर्माल्य द्रव्य तुम खाते हो जिस से तो तुम्हारी बुद्धि मारी जाती है, एवं वंस विध्वंस होता है। यही कारण है कि तुम्हारी जातिकी संख्या दिन २ घटती जा रही है । जब तक तुम लोग देवद्रव्य का भक्षण करोंगे तब तक तुम्हारी जातिका हास