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________________ ( १९ ) वैष्णवलोग उनके देव को जो पदार्थ चढाते है वह पुनः इस भव और भवान्तर में मिलने की नियत से चढ़ाते हैं। जब कि जैन अच्छे से अच्छा पदार्थ देव को अर्पण करते है वह अनाहारी पद प्राप्त करने की इच्छा से अतएव वर्तमान में जो उपरोक्त तुच्छ पदार्थ चढाने की प्रथा जैन मन्दिर में है वह एकदम उठादेनी चाहिये । क्यों कि जैनमन्दिरों का निर्माण केवल आत्मकल्याण निमित होता है। मन्दिर बनवानेवालों का अभिप्राय यह नहीं है कि मन्दिर की प्रतिष्ठा कराके भाडूती मिथ्यात्वी नोकरों के भरोसे पर छोड दे और वह अपनी विषय वासना को पोषण करने को जैन मन्दिरों को अपनी जागीरी बनालें। जैनो ! जरा आंख उठाके देखो तुम्हारे मोक्षदाता मन्दिर और वीतरागदेवों की भाडूती और मिथ्यात्वी पूजारी कितनी अनहद आशातना करते हैं उस आशातना का फल आपको भी भूगतना अवश्य पडेगा । उनकी सब प्रकार की सेवा, भक्तिपूर्वक नही है परवे भाडूती है। देवकी आंगी रचना करते वक्त जो विदेशी चरवीयुक्त केसर और चामड़ामें कुटे हुए सोने चांदी के वर्क मूर्तिके अंग परचिपकाते है उनको पक्षाल करते समय उतारने के लिये वालाकूची एक शस्त्रका काम करती है वह आप देखते ही हैं। अंगलुना फिर किस यत्नासे करते है वहतो आप जानते ही है। अंगलूणों की हालत देखे तो मेले कुचेले रखते है जिसको देवके स्पर्श करने से कितनी आशातना होती है। मन्दिरों में देवके बिलकुल निकट दिपक रखते है उसका ताप और धूआमूर्ति को लगता
SR No.007296
Book TitleAnarya Krutaghni Sevago Ki Kali Lartoote
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimal Jain
PublisherMishrimal Jain
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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