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________________ ( १८ ) पत्रिका नम्बर ८ 9- जैन मन्दिर क्या पुजारियां की जागीरी है ? -6 जागीरदार के जागीरी में जितनी वस्तुऐं पैदा होती हैं उनका जागीरदार हासिल ( हिस्सा ) लेता है । इसी प्रकार जैनियों के घरों में जितनी नई वस्तुऐं ( खाद्य पदार्थ ) आती है वे सबसे प्रथम मन्दिरजी में चढाने की एक प्रथासी पड़ गई है भले ही वह वस्तु योग्य है या अयोग्य, कल्पनिक है या अकल्पनिक उसका विचार कोई भी नही करता है । यहांतक कि भींडी, तोरु, काकडी, सीताफळ, मतीरा, जामफल, अनार, खरबुजा, तरबुज, बोर आदि बहु बीजा फल जोकि श्रावक (गृहस्थ ) कों भी खानेयोग्य नही है याने अभक्ष है तो देव के आगे तो चढाना महा मूर्खता है इसी प्रकार रोटी, शाग, आदि भी खाने पूर्व मन्दिर में चढाए जाते है । यहां कई प्रान्तों मे दिपावली ( दिवाली ) के रोज खाजा, साकलीए, गुलगुला, शकरपारा आदि भी मन्दिर में चढाये जाते हैं । यह प्रथा जैनशास्त्रों से प्रतिकुल है । मन्दिरों मे विधर्मी पूजारियोंने विष्णु मन्दिरों के देखादेखी जैनों के मन्दिरों में भी प्रथा जारी कर एक प्रकार से जागीरदार बन गये हैं । जैनों के देव वीतराग है उनके आगे पुर्वोक्त तुच्छ पदार्थ चढाना सर्वथा अनुचित ही नही वरन मिथ्यात्वका कारण है एवं अधर्मीयो का पोषक है । इस अनुचित प्रवृति से कर्म की निर्जरा और पुन्यबन्धन होने कि बजाय कर्मों का बन्धन और पापबन्ध का कारण होता है ।
SR No.007296
Book TitleAnarya Krutaghni Sevago Ki Kali Lartoote
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimal Jain
PublisherMishrimal Jain
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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