________________
( १६ )
कों देना या दीला देना क्या देवद्रव्यका दुरुपयोग करना नहीं है ? वर्तमान जैनमन्दिरोमें पूजारि नोकर प्रायः विधर्मी और नशाबाज हैं वें उसी देवद्रव्यसे भांग, गांजा, चड़स, अफीम, तमाखु, चलम, बीड़ी और आरंभ सारंभ तथा विषय वासना सेवन करते हैं इतनाही नहीं पर हमारे देवद्रव्य से मिथ्यात्व का पोषण और जैन धर्मकी निंदा होती हुई भी हम देख रहे है । क्या पूजा भणाने वालो को स्वम में भी यह ख्याल था कि हम जो द्रव्य देवकों अर्पण करते है उसीसे एसे अनर्थ होगे ? कदापि नहीं । भांग गांजादि का व्यापार करने वालोको हम व्याजसे पैसा दे तो भी हमकों पाप लगता हैं तब हमारे अर्पणकिये द्रव्यसे विधर्मी लोग अनेक प्रकार के दुर्व्यसन सेवन करते है उसका पाप हमको नहीं लगेगा ? अवश्य लगेगा । अतएव पूर्वोक्त पापोंका भागी पूजा पढ़ानेवाला ही होता हैं इसप्रकार देवद्रव्यका दुरुपयोग होनेसे पूजा भणाने वाले को कर्म निर्जरा के बदले कर्मबन्ध और पुन्यबन्धने के बजाय घोर पापबन्धनका कारण होता है । ऐसी हालतमें ज्यों ज्यों अधिक द्रव्य चढ़ाया जाता है त्यों त्यों अधिक कर्मबन्ध का हेतु होता हैं अतएव पूजाका सर्वद्रव्य (रोकड़ नालेर बदाम शकर चावलादि) देवद्रव्यमें ही जमा होना चाहिए । यदि पूजामें चढ़ाया हुआ देवद्रव्य पूजारियों को देंगे तो, पूजा पढ़ानेवाला, पूजारी और दीराने वाले पंच देवद्रव्यके भक्षी समझे जायगें और शास्त्रकारों के मतसे वेंसब अनंत संसारी होगे।