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(१५) रहा है । हाँ इस महा मंगलकारी पर्व की पूर्ण आहुति पर तो मंगलिक कार्य होना चाहिए । नकि बूरी प्रथा का रुढीचुस्त होना । अतएव जहां २ पर आटा मन्दिर मे ले जाने की प्रथा है वह सर्वथा उठा देनी चाहिये । क्यों कि इसमे देने वाले और ग्रहण करने वाले दोनों व्यक्तिका कल्याण नहीं होता है । वरन नाश ही होता है। जब तक इस बूरी प्रथा का अनुकरण होगा तब तक गृहस्थ और पुजारी का पतन होता ही रहेगा। कई ग्रामों में ऐसा रिवाज बंद हो गया है अतएव जहां पर ऐसी प्रथा अभीतक जारी हो: वहां से सर्वथा एकदम उठा देनी चाहिये यह कार्य एक व्यक्तिका नहीं पर श्री संघ-पंचोंका और नवयुवकोंका हैं कि वे ऐसी हानी कारक रूढ़ियों को समाज से फोरन् निकाल हैं। शुभम् ।
पत्रिका नम्बर ७ प्रभुपूजा या पाखण्डियों का पोषण ।
परमेश्वर की पूजा पढ़ाना तो महान् लाभ का ही कारण हैं पर अपने चढाया हुए द्रव्यका क्या उपयोग होता हैं इस ओर बहुत कम मनुष्यों का लक्ष है । देवको अर्पण किया हुआ द्रव्य देवद्रव्य होता है, यह बात तो जैनोंका एक बच्चाभी समझ सक्ता है इस हालत में प्रभु को अर्पण किया हुआ देवद्रव्य जोरोकड़ नालेरादि सर्व पूजापा पूजारियों (सेवगों)