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चेतो! चेतो ! धर्मादा द्रव्य का दुरूपयोग करना त्याग दो ताकि आपका पतन न हो कर आप उन्नत दशा को प्राप्त कर सके।
पत्रिका नम्बर ६. पर्युषण का पेटिया
यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि मारवाड़ी समाज प्रथाचादी, रुढिके उपासक है । और रुढ़िको हानीकारक जानलेने परभी नही छोड़ते हैं। दूसरा कारण मारवाड़ी समाज का संघट्टन छिन्न भिन्न हो गया है । क्योंकि यदि ४ भाई हानीकारक रुढ़िको छोडनेका प्रयत्न करे तो ८ भाई उसके प्रतिकुल हो कर रुढि चुस्त हो जाते है अगर दोनो तरफ के लोग दृढ हो जावे तो न्याती मे तड़-घड़े पड़ जाते हैं। इसी कारण आज सुधारके : युग में भी मारवाड़ी समाज पिछड़ती जाती है ।
इसी प्रकार थोड़ा समयसे एक एसी रुड़ी पड़गई है कि पर्युषण के अन्त में अर्थात् संवत्सर के दूसरे रोज पेटीया ( आटा, आदि) मन्दिर में जाकर चढाते है । यह प्रथा बुरी तो है ही पर मंगलिक के दिन अपशुकन भी है । विधवा और रंडुओंकी वृद्धिका एक मुख्य कारण भी है । आप जानते है कि जिन भगवान वीतराग हैं उनके वहां आटा के पेटिया की क्या आवश्यक्ता है ? कुछ भी नही, पेटिया तो मृत्युके समय निकाला जाता है और उसे कुत्ते कंवे ( कागडे) खाते है । ऐसी बुरी प्रथा को रोकने के बजाय गडरिया धसान सा हो