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कारोने अनन्त संसारी बतलाया है इसी प्रकार ज्ञान द्रव्य ( ज्ञानकी पूजा के समय अर्पण किया हुआ द्रव्य ) गुरु द्रव्य ( गहूंली आदि ) इन द्रव्योंका भक्षण करना कराना और करते हुए को अच्छा जाने उसको अनंत काल तक संसार में भ्रमण करना पडता है । जैनी स्वयं तो उपरोक्त द्रव्यों का उपयोग निज काम में नही करते परंतु सेवगों (पूजारियों ) को दे देते हैं । बिचारे सेवग ( पूजारी ) जो अज्ञानी और लोभी है । वे धर्मादा का द्रव्य खा कर इसभव में तो गल गये और पर भव में संसार वृद्धि के पात्र बनते हैं । सेवग इतना भी नही सोचते है कि जैनी एसा निर्माल्य द्रव्य खाने में महान पाप समझते हैं तो हम इसका भक्षण कैसे करें। जैनों की दूर्दशा होने का भी यही कारण है कि वे अपने स्वार्थ के कारण देव द्रव्यादि का दुरुपयोग करते हैं । यदि जैनी तथा सेवग पूजारी - अपना भला चाहे तो देव द्रव्यादि कों भक्षण करनेमें उपयोग न करे । अतएव जो कोई भी द्रव्य देव को अर्पण करे या ज्ञानको अर्पण करे अथवा गुरु को अर्पण करे वे सब देव, ज्ञान और गुरु के निमित ही उपयोग में लाना चाहिये ।
सेवग - पुजारियों को काम के बदले में यदि कुच्छ देना है तो साधारण में से देवे क्योंकि पुजारी जो काम करते है वे सब श्रावकों की तरफ से करते हैं । आज जैनोंकी और सेवग - पुजारियों की अधोदशा जो हो रही है और मति भ्रष्ट हो रही है इसका खास कारण धर्मादा द्रव्य का दुरूपयोग करने कराने और उपेक्षा करना ही है । अतएव जैनो ! और सेवगो !