SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) कड़कती भुख कहती इसी, करसु वास कंटालिये । शाह मिल आया सामने, मुक्त भूख मुहालिये। ऐसे सेकडों कवित जैनीयों की निंदा का इन नीच निंदकोंने बनाये है तथापि हमारे जैन भाईयों में कितनी अन्ध श्रद्धा है कि काम पडने पर इन अनार्य निंदकों का पक्ष कर न्याति में पार्टि-धड़ें-तड़ डालके पक्षपात कर बैठते है । सेवगों को जैनियों की अटकल आगई है ऐसे काम पड़ने पर एक पार्टीकों मा बाप कर लेते हैं । पर अब वह जमाना चला गया है। नवयुवक समझने लग गये है। कई ग्रामों में सेवगों का बहिष्कार कर दिया है। लग्न-ब्याह में जो त्याग देते हैं वह मन्दिरजी में जमाकर उस द्रव्य से मन्दिरजीकी अच्छी तरह से पूजा कराइ जा सकती है । जैनो ! क्या आपको अपने धर्म या जाति का तनिक भी गौरव है ? यदि है तो इन निन्दकों को शीघ्र ही दूर करो, चेतो ! सावधान हो जाओ! जरा भी प्रमाद किया तो पछताना पडेगा। पत्रिका नम्बर ५ देवद्रव्य का दुरुपयोग. देव को अर्पण किये हुए द्रव्यको देव द्रव्य कहते है । चाहे रोकड, फल, नैवेद्य, और अक्षतादि हो सबका देवद्रव्य में समावेश होता है । देव द्रव्य को भक्षण करे, कराचे या करते हुए को अच्छा समझे या उपेक्षा करे इन सबको शास्त्र
SR No.007296
Book TitleAnarya Krutaghni Sevago Ki Kali Lartoote
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimal Jain
PublisherMishrimal Jain
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy