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(११) तक आया भवानी बहान पै (संघ) आगे शियल का बहान को बेठा ही पाया ( गदह) सभा भरी शिव वहान की (बेल-बलद) शनी देवको बहान शिश धूणायो ( भंसा) आशीर्वाद को शब्द सुनी (सेवगोका कंगलापना ) तब भैरूको बहान धड के आयो (कुत्ता) धुर धुर शब्द तो बहुत कियो ( गालियां) पण सेवग को पाव तो तोड़ ही खायो ॥१॥ ___इस अनार्य नीच सेवगने श्री संघ को गदाह-बैल-भंसा
और कुत्ता तक बना दिया फिर भी कई लोग इन निंदकों का पक्ष कर बैठते है । देनेवालोंका गुण और नही देनेवालोके अवगुण करना तो इन कमीन कंगलोंका जाति स्वभाव ही है। आजकल ग्रामों में जाते है तब कहते हैं कि हम जैनियों के वहां कच्ची रसोई नही जीमते है । लेकिन अब तो ग्रामो में भी इनका सम्बन्ध तुट गया है । यदि कोई सेवग भुखा प्यासा आ जावे तो करुणादान समझकर रोटीका टुकडा खिला देते है। इसपर भी ये लोग कृतघ्नी होते हैं जिनका अन्नजल लेते हैं उन्हीं की निंदा करते हैं । भूख का कवित निम्न लिखित कहते हैं।
जाडण खाबल जन्म, उठ धोले रे आई। रही धीनावस रात, परबात बीलाडे पेठी। खरी भूख खोखरे, वहाने जाई वली बेठी। हाल हाल हरिया डांणे, हाल भूख नाथों रे गुड़े।