________________
( १० )
जोधपुर के जगद् प्रसिद्ध दिवान सिंधी जी इन्द्रराजजी के मोसर के बारे में फतेहराजजी सिंधी के लिये सेवगों ने नीच शब्द कहे और बहुत भांडा ।
1
" दुर्बलदान 'फते' नही दीनो, संघवी कुड़ो मोसरकीनो " मुलकडंड ने घृत मंगायो, इण विधि खांड मंगाई ॥ टीके दान हजारों लीना, जिनमें न्यात जिमाई || दु० १ ॥ दो पैसो में मटकी बेची, एक पैसामें हांडी ॥ फिर वेची पापड़ तरकारी, भेखत माया भांडी ॥ दु०२ ॥ साहबचन्द की जीत सदाई, घणा नगारा धूरसी । मास पांच सातों के माही, केद फताने करसी ॥ दु० ३ ॥ मिले नही फतमलको मोसर, जोधाणा में जोतां । दक्षणा नीट देवो यो दूतो, जिम रुपयो रुपयो रोतां ॥ दु० ४ ॥ भाट - कंगला और कृतघ्नी नीच मनुष्य के सिवाय ऐसे शब्द कौन कह सकते।
झोरा मगरा के पंचोने इन नीचों को कांसीकी थाली देनी बन्धकर इनका बडाही तिरस्कार कर सम्बन्ध तोड दिया । उस समय इन भाटों ने अपनी दीनता इस प्रकार दिखलाई । "सुनो अर्ज सतावीस झोरे, सब बुद्धिमंत मुलकों मखते । हम याचक तुम पिता हमारे, करडी नजर केसे करते " ॥
किसी एक स्थान पर श्री संघ एकत्र हुआ था उस समय एक सेवग आया और बकवाद करने लगा । तब उसको रोक तो उस नीचने निम्न लिखित एक कवित बनाया ।