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___उपरोक्त दान देने के पश्चात पूरा एक मास भी नहीं हुआ था कि सेवगोंने भामाशाह का पुतला बना के जलाना शरू किया जो निम्न कवितसे विदित होता है।
सूरो शकर सारखो, अन्धो तूं ही ज आक । भुंडा मुहडारा भोमला, तो मांगण तलाक ॥१॥
भामा तूं भारमलको, कुल ने लगायो काट । — आदू सेवग छोडके, लारे लगाया भाट ॥२॥
मारवाड़ के सेवग मेवाड के सेक्गों को भाट बतलाते है साथ ही मेवाडके सेवग मारवाडके सेवगों को भाट कहते हैं। महात्मा रिषभदास की सोध सोलाह आना सत्य मालूम होती है। खेरवा के महाजनों के लिये सेवग कहते है:ठग ठाकुर ठक्कुराई मांडी, रुपो रंग बतावे । ___मैं तो बेटा बेटी थांरा, पिता तूं कोई जोर जमावे ॥१॥ सुणो अरज सेवग की पंचो, मा बाप थे वाजो । __मैं तो बेटा बेटी थांरा, लड़ता आपसु लाजो ॥ २॥ तिलकशी तीखो गणो, सेवग निवत जमावे ।
घोड़ा ऊंट ने कडा कंटी, लाख सिरपाव देरावे ॥३॥
उपरोक्त कथन से साफ विदित होता है कि सेवग लोग जैनों को मा बाप मानते हैं, और आप बेटा बेटी बनते हैं। आज वे ही सेवग जैनियों के गुरु बनने को तैयार हो रहे है ? क्या यह सरासर नीचता नही है ? ।