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मिट्टी खराब की है। अच्छा, यह भी कुछ कह सकते हो कि-मारवाडी भाषाकी मिश्री किस लिये डाली ? ।
आगे चलकर उखी १६ वें पठमें लिखा गया है कि'पालीमें करीब १५ दिनके और ठहरे रहे, कोई बिहार नहीं किया, और न प्रश्नोंका उत्तर दिया ।'
प्रश्नोंके उत्तर तय्यार करके जैन शासन' में क्रमशः छपवानेके लिये भेज भी दिये थे । कोकि अखबारके द्वारा ही जवाबोंके देनेका निश्चय किया था। तिसपर भी, उन लोगोंको यह सूचित किया था कि-"अगर तुम्हें जल्दी जवाब चाहिये तो, एक पब्लिक सभा करो, जिसमें पाली के प्रतिष्ठित पंडित तथा राज्यके अमलदार लोग मध्यस्थ बनाए जाय, और हमारे आचार्यमहाराजश्री तुम्हारे तेईस प्रश्नों के उत्तर दे दें।" लेकिन इन लोगोंने सभा करनेसे बिलकुल इन्कार किया। इस विषय. में उनके आए हुए रजिस्टर पत्र हमारे पास मौजूद हैं। ___ अन्तमें इतना ही कहना काफी है कि-इन लोगोंने, अपने ट्रेक्टमें मृषावादकी मात्रासे भरी हुई बातें प्रकाशित की हैं । इस लिये इनके ऊपर किसीको विश्वास नहीं रखना चाहिये । इन लोगोंका यह स्वभाव ही है कि-झूठी २ बातों को प्रकाशित करके अपने ढाँचेको खडा रखना । परन्तु स्मरण रखना चाहिये कि-निर्मल, निर्मल ही है। और निर्मूल वस्तु कभी ठहर नहीं सकती। अस्तु, इस विषयको अब यहाँ ही समाप्त किया जाता है । आशा है ये लोग बुद्धिमत्तासे विचार करके तत्वकी बातको ग्रहण करेंगे।