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तेरापंथ-मर समीक्षा
तो फिर तुम्हे मालूम हो जायगा, कि इस कालकी अपेक्षा धुरंधर आचार्योंका - पवित्र मुनिराजों का सामेला ( सामैया ) गामके मुताबिक हो तो इसमें आपकी बात ही क्या है ? क्या मुनिराजों को खोजेके मुडदेकी तरह शहरमें लाना अच्छा समझते हो ? यदि ऐसाही है, तो यह बात अप लोगोंको ही मुबारक रहे । खुशीसे तुम्हारे साधुओंकों उस मुताबिक ले जाया करो ।
इन लोगों के इस ट्रेक्टसे विदित होता है कि - यह ट्रेक्ट सिर्फ सच्ची बातको उड़ा देनेके लिये ही निकाला है। अगर ऐसा न होता तो वे इसमें इतनी असत्यपूर्ण बातें कभी न लिखते । और चचके विषय में उन्होंने जो वृत्तान्त लिखा हैं वह असत्यता से भरा हुआ है । भवका डर रखनेवाला पुरुष कभी ऐमी ऊटपटांग झूठी बातें प्रकाशित नहीं कर सकता । ;
शिरेमल श्रावक के साथमें आचार्यमहाराजके वार्तालाप होनेकी बात ८-९ पृठुमें लिखी हैं, वह भी ऐसी ही झूठी है । शिरेमलसे ऐसी बात कभी नहीं हुई है । इस बानकी साक्षीगवाही पंडित परमानन्दजी वगैरह वेही महानुभाव देसकते हैं, जो उस चर्चाके समय हरसमय उपस्थित रहा करते थे ।
पालीके तेरापंथीभाई अपने ट्रेक्टके १६ पृष्ठमें लिखने बे हैं कि -" उपरोक्त तेवीस पन मारवाडी भाषा मिश्रित लिखकर .... दिये । " हम पूछते हैं कि यह मारवाडी भाषाकी मिश्री डाली किसमें ? प्रधान एक भाषा भी तो होनी चाहिये । तुम्हारे प्रश्नोंमें खास एक भाषा तो कोई है नहीं । छप्पनमसालेकी दाल जैसे बनाये, वैसे ही बिचारे तेईस प्रश्नोंकी