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तेरापंथ गत समीक्षा।
पासीके तेरापंथीयोंकी एक अं
संसारमें ऐसी कहावत है कि-'सो मूखोंसे एक विद्वान् अच्छा, जो तत्त्वकी बात या युक्तिको समझ भी तो ले।' हमारे पवित्र जैन धर्मको कलंकित करनेवाले तेसपंथी शास्त्रकी गंधको भी तो जानते ही नहीं हैं, और जहाँ तहाँ विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करनेको या प्रश्नोत्तर करनेको खडे हो जाते हैं । अस्तु, लेकिन तारीफ तो इस बातकी है कि-इम लोगों को चाहे कितनेही शास्त्रोंके पाठोंसे तथा युक्तियोंसे समझायें, परन्तु ये अपने पकडे हुए पूँछको कभी छोडते ही नहीं हैं। ऐसे आदमियोंसे शास्त्रार्थ करना या वादानुवादमें उतरना क्या है, मानो अपने अमूल्य समयपर छुरी फिराना है । झूठ बोलता असत्य बातोंको प्रकट करना-समझने पर भी अपनी बातको नहीं छोडना और झूठा शोर मचाना, इत्यादि बातीकी, इन लोगोंने अपने गुरुओंसे ऐसी उमदा तालीम पाई हुई है, किमानो इन बातोंके ये प्रोफेसर ही बन बैठे हैं।
अभी इन्हीं दिनोंमें-पाली मारवाडमें हमारे परमपूज्यमातःस्मरणीय आचार्य महाराजके साथ, वहाँके तेरापंथियों ने जो चर्चा की थी, उसका सारा वृतान्त इस पुस्तकमें पाठक पढ़ चुके हैं । और इन लोगोंने जो तेईस प्रश्नोंका एक असंबद्ध चिट्ठा लिख करके दियाथा, उनके उत्तर भी इसमें अच्छी तरह दे दिये गये हैं। जिस समय, उन्होंने प्रश्न दिये थे, उस समय सबके समक्ष यह निश्चय हुआ था कि-इन प्रश्नोंके उत्तर अखबारके द्वारा दिये जायेंगे । इस नियमानुसार उन प्रभोंके बदर भावनगरके जैन शासन' नामक अखबारमें छपनाए