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तेरापंथ-मत समीक्षा।
त समाक्षा।
भी पर्युषित अनके खानेका निषेध किया करते हैं वैष्णव लोग भी स्नेहयुक्त पर्युषितानको त्याग करते हैं। देखिये मनुस्मृत्तिके पांचवें अव्याय, पृष्ठ १८३ में कहा है। 'यत् किश्चित् स्नेहसंयुक्तं लक्ष्यं नोज्यमगर्हितम् । तत्पर्युषितमप्यायं हविःशेषं च यद् भवेत् ॥२४॥ चिरस्थितमपि त्वाद्यमस्नेहाक्तं द्विजातितिः यवगोधूमज सर्व पयसश्चैव विक्रिया ॥२५॥ . भावार्थः-जो लड्डु वगैरह, थोडे स्नेहयुक्त, कठिन, कोमल तथा बिगडे हुए नहीं हैं, वे खाने लायक हैं । तथा होमसे बचा हुआ, जो पर्युषित है, वह भी खाने लायक है ।
बहुत कालसे रहा हुआ, स्नेह रहित जो यव, गोधूमसे उत्पन्न हुआहो तथा दूधका विकार जो मावादि (खुआ) होता है, वह ब्राह्मणोंको खाने लायक है। ___ उपर्युक्त दोनों श्लोकों भक्ष्य-पर्युषित खानेलायक दिखलाया।
और उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि-जिसमें जलका भाग न हो, वह खाने लायक है । यही बात तत्ववेत्ता जैनाचार्य भी कहते हैं । तथापि तेरापंथी लोग मनमाने अर्थ करके भगवान्की वाणीको सदोष बनाते हैं।
परन्तु महानुभावो ! जमाना दूसरी तरहका है । इस समयमें तुम्हारे मनःकल्पित अर्थ, विद्वानों के आगे चलने वाले नहीं हैं। 'पर्युषितानं त्यजेत् ' इत्यादि वाक्य जैन तथा जैनेतर शास्त्रों में स्पष्ट दीख पड़ते हैं। रात्रीका रहा हुआ जलवाला पदार्थ