________________
तेरापैय मत समीक्षा
|
काका रहस्य भी, सिवाय गुरुके नहीं मिल सकता। वासीका अर्थ पर्युषित भक्त करने से तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होनेवाला नहीं है । क्योंकि - पर्युषित दो प्रकारके होते हैं । भक्ष्य तथा अभक्ष्य । 'पर्युषित' शब्दका अर्थ 'शतका रहा हुवा भक्त' ऐसा होता है। इसमें ऐसा नहीं है कि स्नेह सहित या स्नेह रहित । अतएव भक्ष्य अभक्ष्य दोनोंका ग्रहण होता है। इनमेंसे जो भक्ष्य चीजें होती हैं, वेही भगवान् तथा भगवान् के अणगारसाधु लेते हैं । और अभक्ष्य चीजें लेते नहीं हैं। सूत्रोंमें ऐसेभी पाठ हैं कि - चलितरस, जिसमें लीलण - फूलण आगई हो तथा रूपरस-गंध स्पर्श बदल गये हों, वैसे आहारको नहीं लेना । महानुभाव ! प्रथम तो आप लोगों को चलित रसका ज्ञान ही नहीं हैं । क्योंकि, लीलण - फूलण पांच प्रकारकी है। उसमें तद्वर्ण लीलण - फूलण तुम्हारेसे जानी नहीं जायगी । अत एव शास्त्रों पर श्रद्धा रख करके सिद्धि सडकको पकड़ लीजिये । ज्ञातासूत्रके पृष्ठ ६०० में आहारका अधिकार है। उत्तराध्ययनसूत्रके २४९ में आठवें अध्ययनकी बारहवीं गाथामें वें भी यही अधिकार है | परन्तु वहाँ किसी स्थान में बहुत दिनों के आहार के लेने को नहीं कहा है। जहाँ 'पुराणा' कहा है । वहाँ उडदका भाव कहा है । अतएवं जल रहित चूर्ण लेनेने हामी नहीं है । जिस परमात्माको भूत-भविष्य तथा वर्तमानकालका निर्मल ज्ञान था । ऐसे परमात्माने जिस समय सूक्ष्मदर्शकादि यन्त्रों के साधन नहीं थे, ऐसे समय में अपने ज्ञानके द्वारा समस्त वनस्पतिमें, जलमें, तथा कंदमूल वगैरह में; जीवोत्पत्ति दिखलाई है | यह बात आजकल सायन्स विद्यासे, डाक्टरी नियमों तथा आयुर्वेदादिसे सिद्ध होती है। देखिये, आजकलेके जमाने में सायन्सवेत्ता डोक्टर लोग 'तथा बैद्य लोग
1
६३
F