________________
तेरापंथ - मत समीक्षा ।
५९
...इत्यादि कई जगह धर्मके निमित्त भगवान् ने ऐसा कहा है। इसी तरह देवमंदिरादि धर्मकृत्यों के उपदेश देने में किसी प्रका रकी हानी नहीं है ।
१
"
प्रश्न - १७ आचारंगरे चोथे अध्येन दुज उदेशेकेयो के धर्म - हेते सर्व प्रांण भूत जिव सत्वं इणीयां दोस नहि कवै, ती वचन अनारजना है तो फेर आप इण पाठरे खीलाप प्रतिमा पूजणेमें धर्म क्रेसे परूपते हो, कीडके प्रतिमाकी अन्य पूजा कर्णेमें प्रत्यक्ष जीवहींसा होती है ।
=
उत्तर - आचारांगके चोथे अध्ययन के दूसरे उद्देशेमें जो पाठ है, वहाँ 'हिंसा करनेमें दोष नहीं है' ऐसे बोलनेवाले के वचन, अनार्यके वचन हैं। तथा 'दया पालनमें दोष नहीं है ' यह वचन आर्यका है । इस मतलबका जो पाठ, प्रश्न पूछनेवीले महानुभाव दिखलाते हैं । वह पाठ, असलमें ऐसा सूचित नहीं करता है कि-' धर्मके निमित्त हिंसा करे तथा धर्मके निमित्त हिंसा करनेवाला दोषवाला है, उस पाठवें ऐसा भाव बिलकुल नहीं है। देखिये, आचारांगके २३०. वें पृष्ठमें वे दोनों पाठ इस तरह हैं
:
1
" भोजणं तुब्ने एवं माइक्खद, एवं भा सह, एवं पण्णवेद, एवं परुवेद, सव्वे पाणा सव्वे भूआ, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता, हंतवा, अजावयेवा, परितावे अव्वा, परिघेत अव्वा, उद्दवेतवा एत्यंवि जाह नत्थित्थ दोसो अणायरियवयणमेअं."
वयं पुण एवमाइक्खामो, एवं भासामो, एवं