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तेरापंथ -मत समीक्षा ।
उत्तर- भूत-भविष्य तथा वर्तमान तीर्थकर महाराजाओं ने हिंसाका निषेध किया, सो बराबर है । परन्तु धर्मके निमित्त समस्त जीवकी - समस्त प्राणीकी हिंसा नहीं करनी, ऐसा वचन नहीं है । तिसपर भी आप लोग ऐसे मनःकल्पित प्रश्न उठाते हैं । इसीसे तुम्हारी बुद्धिका रहस्य झलके रहा है। यदि तीर्थकरों के क्चन वैसे मिलें, तो - तीर्थंकर महाराज गौतमस्वाभीको, देवशर्मा ब्राह्मणको प्रतिबोध करनेके लिये क्यों भेजते ? आनन्द श्रावकके पास अवधिज्ञान संबंधी 'मिच्छामिदुक्कर्ड' देने को क्यों भेजते ?' गौतम ! मृगालोढियाको देख आवो' ऐसा क्यों कहते ?' गौतम ! मालयकच्छ में सिंहाअनगार रोता है, उस को समझाकर बुला लाओ, ऐसा क्यों कहते ? | क्योंकी - उपयुक्त कार्योंमें जीवविराधना होनेका संभव है, परन्तु वे आज्ञाएं भगवान् धर्मकै निमित्त की हैं। इसके सिवाय गोचरीके लिये भी भगवान् आज्ञा देते हैं । देखिये, उपासक दशांग के पृष्ठ
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७२ का पाठ:
“ इच्छामि गं भंते! तुब्भेहिं अमलाए छठ्ठक्वमापारणगंसि वाणिअगामें नयरे उच्चनीअमज्झिमाई कुलाई घरसमुदायस्स निक्खाश्रयरिआए अडितए अहासुई देवाणुपिया ! मा पडिबंधं करेहि । "
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अर्थात्-हे भगवन् ! आपसे अनुज्ञात हुआ मैं बेलेके ( दो उपवास) पारणेके लिये वाणिज्यग्रामनगर में गोचरी लेनेको जाऊं, ऐसा चाहता हूँ | तब भगवान् ने कहा :- 'हे देवानुमिय ! विलंब मत करो ' |