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तेरापंथ -मत समीक्षा ।
“सुतत्थे खलु पढमो बीओ निज्जुत्तिमीसओ भणिओ। ओय निरवसेस एस विही होइ अणुओगे || १॥"
अर्थात् - प्रथम सूत्रार्थ ही देना, दूसरे निर्युक्ति सहित देना, और तीसरे निरवशेष (संपूर्ण) देना । यह विधि अनुयोग अर्थात् अर्थ कथन की है।
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इस पाठसे सिद्ध होता है कि नियुक्ति को मानना, तिसपर भी क्यों नहीं मानते ? । तीसरे प्रकारकी व्याख्यामें भाष्यचूर्णि और टीकाका भी समावेश होता है । परन्तु मानते नहीं है ।
अनुयोगद्वार सूत्र में दो प्रकारका अनुगम कहा "सुत्तायुगमे निज्जुत्तिअणुगमे य । तथा - निज्जुत्तिअणुगमे तिविदे पण्णत्ते उवग्धायनिज्जुत्तिअणुगमे इ त्यादि । तथा उद्देसे निदे से निगमे खित्त काल पूरिसे य'
इत्यादि दो गाथाएं हैं ॥
अब हम पुछते हैं कि यदि पंचांगीको नहीं मानोगे तो उक्त पाठका अर्थ क्या करोगे ? |
अच्छा इसके सिवाय और देखिये :
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उतराध्ययन सूत्रके २८ वे अध्ययनकी २३ वीं गाथामें
कहा है
होई अभिगम सुयनाणं जेण अत्थश्रो दिसं इक्कारस अंगाई पन्नगं दिट्टिवाओ य ॥ १ ॥