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तेरापंथ-मत.समीक्षा।
तेरापंथी श्रावकोंने तेईस प्रश्नोंके उत्तर उनके माने हुए बत्तीस सूत्रोंके मूल पाठसे मांगे हैं । परन्तु बत्तीस ही मानने पेंतालीस और नियुक्ति-टीका इत्यादि न मानने, इसका क्या कारण है ? इस विषय पर, यहाँ कुछ परामर्श करना समुचित समझते हैं।
बत्तीस सूत्र मानने वाले महानुभाव यदि यह कहें किहम इस लिये बत्तीस ही सूत्र मानते हैं कि-बे गणधर देवके बनाए हुए हैं। परन्तु यह उन लोगोंकी भूल है। गणधरोंने तो द्वादशांगीकी ही रचना की है। उसमें भी दृष्टिवाद तो विच्छेद होगया है। अब रहे ग्यारह अंग । उन ग्यारह अंगोको ही मानने चाहिये । किस आधारसे उपांगादि सूत्रोंको मानते हैं ? यह दिखलाना चाहिये । यदि यह कहा जाय कि-नंदीसूत्रके आधारसे मानते हैं, तब तो फिर नंदीसूत्रमें कहे हुए सभी सूत्रों और नियुक्ति वगैरहको मानने चाहिये । नंदीसूत्र देवदिगणिक्षमाश्रमणका बनाया हुआ है, उस नंदीसूत्रको जब मानते हैं, तब देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणके उद्धृत किये हुए सभी सूत्रोंको क्यों न मानने चाहिये ।। ___ अच्छा ! अब जो बत्तीस सूत्र, माननेका दारा करते हैं, उनको भी पूरी चालसे नहीं मानते हैं, अतएव इसके कुछ नमूने दिखला देने चाहिये। - नंदीसूत्र जो बत्तीस सूत्रों से एक है, उसमें साफ २ लिखा है कि-' टीका, नियुक्ति तथा और प्रकरणादिको मानना चाहिये, परन्तु मानते नहीं हैं। इसके सिवाय देखिये भगवती सूत्रके २५ वे शतकके तीसरे उद्देशेमें पृष्ट १६८२ में