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________________ ४ दोनों विषयोंपर लिखने का इरादा किया था, परन्तु खेद है किअवान्तरमे अन्य कार्योंके उपस्थित हो जानेसे और इधर चातुर्मास की पूर्णाहूति भी समीप ही आजानेसे 'मूर्तिपूजा' के विषय पर मुझसे कुछ भी न लिखा गया । मैं उस दिन अपनी आत्माको विशेष धन्य समझंगा, जिस दिन 'मूर्तिपूजा' और तेरापंथियोंके अन्य मन्तव्यों पर एक और पुस्तक लिख कर पाठकों के कर कमलों में समर्पित करूंगा । इस पुस्तक में मैंने खास करके तो दया दानके विषय में ही विशेष लिखनेका प्रयत्न किया है। इसके साथ में, संक्षेप से इस (तेरापंथ) मतके उत्पादक 'भीखमजीके जीवन' और 'मुहपती बांधना शास्त्र विरुद्ध है कि नहीं, इनकी आलोचनाएं भी आवश्यकीय समझ कर की गईं हैं । इस पुस्तक के लिखने में, जहाँ तक बना है मैंने 'सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम्' इस नियमको स्मरण में रक्खा है, तिस पर भी कदाचित् कहीं अनुचित शब्द लिखा गया हो, तो इसके लिये मुझको दोषित न गिन कर, तेरापंथियोंकी पुस्तकें 'भर्मविध्वंस', ‘तेरापंथी श्रावकों का सामायक पडिक्कमणा अर्थ सहित', ' तेरापंथीकृत देवगुरु धर्मनी ओलखाण', 'जैनज्ञानसारसंग्रह', 'जिनज्ञानदर्पण', 'श्रीभीखमजी स्वामिको चरित्र रास' तथा 'ज्ञान प्रकाश' (प्रश्नोत्तर) वगैरहको ही गिनना चाहिये, जिनको पढ करके मैंने यह पुस्तक लिखी है । उनकी पुस्तकों में ऐसे असभ्य और कटु शब्द लिखे हैं, जिनकों देख राभसवृत्तेिसे कहीं अनुचित शब्द निकल जाना संभवित है । इस पुस्तक लिखने में अगर मैं कुछ भी प्रशस्त प्रयत्न कर सका हूँ और पाठकोंके संतोषकारक युक्तियाँ दे सका हूँ, हूँ, तो वह मेरे पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय गुरुवर्यकी कृपाका •
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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