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________________ लिख सका था। इस लिये उनके किसकी बहुत भारता समझता था। बोकि आजकल के मनुष्योंको जब तक मास प्रमाण और युक्तियों के द्वारा किसी भी विषयको न समझाया जाय, सब तक उनके अन्तःकरणों में इसका असर नहीं पहुँच सकता है। और राचिने अपनी पुस्तकोंमें भद्रिक जीवोंके फँसाने के लिये हमें २ दृष्टान्त और कुयुक्तियां दी हैं, जिनको पढ करके, सामन्य बुद्धि वाला मनुष्य तो एक दफे 'इदं किम्' इस विचारमें अवश्य ही पड सकता है। तेरापंचियों के सभी सिद्धान्त ऐसे हैं, जिनके विषय में बहुत कुछ लिखनेकी आवश्यकता है । सिद्धान्त ही नहीं, उनके आधारों पर मी लंबी बोडी आलोचनाओं के करनेकी जरूरत है। क्योंकिसंसारमें ऐसा कोई मजहब नहीं होगा कि-जो साधु, और साध्वियोंको आपसमें घनिष्ट संबंध के रखनेका तेरापंथियों की तरह प्रतिपादन करता हो । यही क्यों ? तेरापंथी साधु और साध्वियों एक ही मकान में रहने में भी पाप नहीं समन्तते । हाँ, एक आंगनमें नहीं रहनेका अवश्य जाहिर करते हैं । देखिये, इसके लिये, कुछ दिन पहिले उदयपुरके मी० कावडियाजीने, आने निकाले हुए हरितहारमें लिखा है:__ "रात्रीको छोटीसे छोटी लड को भी साधुओंके निवासस्थान (एक आंगन ) में नहीं रह सक्ती" . इससे स्पष्ट जाहिर होता हैं कि एक मकान में अवश्य रहती हैं। इसके सिवाय और भी बहुतसे आचार उनके ऐसे हैं, जो कि शास्त्रसे-व्यवहारसे सभी प्रकारसे सर्वथा खिलाफ हैं। तेरापंथियोंके जितने सिद्धान्त शाल विरुद्ध हैं, उनमें 'दया-दामपारिजाका पिये मुख्य हैं । इस पुस्तक में मैंने इन
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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